देहरादून में निनाद-2025: हिमालयी रंगों, लोक धुनों और पारंपरिक नृत्यों ने बिखेरी संस्कृति की अनुपम छटा
Uttarakhand News: उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह के तहत आयोजित निनाद-2025 के तीसरे दिन देहरादून में हिमालयी संस्कृति का रंगारंग संगम देखने को मिला। तिब्बत से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के कलाकारों ने अपनी लोकधुनों और पारंपरिक नृत्यों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जौनसार-बावर के हारूल नृत्य ने कार्यक्रम में जोश और लोकगर्व का रंग भर दिया।
दीप प्रज्वलन के साथ हुई शुरुआत
हारूल नृत्य में झलकी वीरता और प्रेम की गाथा
लोक कलाकार लायकराम और उनके साथियों ने पारंपरिक वेशभूषा में वीरता और प्रेम से ओतप्रोत गीतों पर थिरकते हुए ऐसी प्रस्तुति दी कि पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। हारूल नृत्य सामान्यतः मरोज और बिस्सू जैसे पर्वों पर किया जाता है और यह लोकजीवन की वीरगाथाओं तथा ऐतिहासिक घटनाओं का प्रतीक माना जाता है। प्रस्तुति के उपरांत उपनिदेशक आशीष कुमार ने कलाकारों को सम्मानित किया।
राग और परंपरा का मनमोहक संगम
हिमालयी विविधता को रेखांकित करते हुए तिब्बत इंस्टीट्यूट ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स, धर्मशाला के कलाकारों ने स्नो लेपर्ड और नागरी माब्जा नृत्य प्रस्तुत किए, जिन्होंने दर्शकों को तिब्बती लोककला की गहराई से परिचित कराया। वहीं, अरुणाचल प्रदेश की आदी और गालो जनजातियों ने अपने पारंपरिक गीतों और नृत्यों से उत्सव को जीवंत बना दिया। उनकी रंगीन पोशाकें और आभूषण आकर्षण का केंद्र बने रहे। महापौर सौरभ थपलियाल ने अतिथि कलाकारों को शाल और स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया।
स्थानीय भाषाओं और संस्कृति को शिक्षा से जोड़ने पर जोर
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ‘उत्तराखंड की लोकभाषा एवं संस्कृति’ विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। इसमें प्रो. देव सिंह पोखरिया, डॉ. नंद किशोर हटवाल, लोकेश नवानी और डॉ. नंदलाल भारती ने विचार रखे। वक्ताओं ने कहा कि नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं को शिक्षा से जोड़ना एक सराहनीय कदम है। उन्होंने लोक भाषाओं के मानकीकरण, पाठ्यक्रम निर्माण और डिजिटल माध्यमों से प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया।
