विजुअल नहीं, कहानी मायने रखती है! पैन इंडिया फिल्मों की चमक पर बोले राम गोपाल वर्मा, ‘शिवा’ की री रिलीज से जोड़ी उम्मीदें
Ram Gopal Varma On Pan India Movies: फिल्ममेकर राम गोपाल वर्मा आजकल अपनी कल्ट क्लासिक फिल्म शिवा की री-रिलीज को लेकर चर्चा में हैं। इस दौरान उन्होंने मौजूदा दौर के सिनेमा की दिशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि आज की कई पैन इंडिया और मेगा बजट फिल्में सिर्फ विजुअल इफेक्ट्स पर निर्भर हो गई हैं और कहानी की गहराई को नज़रअंदाज़ कर रही हैं।
बड़े बजट की फिल्मों से ज्यादा जरूरी है सच्ची कहानी
‘शिवा’: जहां हीरो था आम इंसान
राम गोपाल वर्मा ने अपनी 1989 की कल्ट फिल्म शिवा का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह फिल्म आज भी प्रासंगिक इसलिए है क्योंकि इसमें हीरो को सामान्य व्यक्ति के रूप में दिखाया गया था।
फिल्म में नागार्जुन ने एक कॉलेज के छात्र की भूमिका निभाई थी जो स्थानीय गुंडों, भ्रष्ट नेताओं और छात्र राजनीति के जाल में उलझ जाता है। इस फिल्म ने 80 के दशक के सिनेमा में यथार्थवादी कहानियों की नींव रखी थी।
हीरो पहले फ्रेम से नहीं बनता, कहानी से बनता है
वर्मा ने आज के सिनेमा को लेकर कहा कि “मास मसाला फिल्मों में हीरो का परिचय ही असली कहानी को कमजोर कर देता है, क्योंकि जैसे ही वह स्लो मोशन और बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ एंट्री करता है, दर्शकों को पता चल जाता है कि वह सौ लोगों को पीटेगा।” उन्होंने आगे कहा कि असली सिनेमा तब बनता है जब हीरो आम इंसानों की लड़ाइयों में दिखे, न कि सिर्फ एक अजेय किरदार के रूप में।
"शिवा" आज भी प्रासंगिक क्यों है
वर्मा ने बताया कि शिवा की कहानी इतनी मजबूत है कि इसे किसी भी दौर और किसी भी संघर्ष वाली परिस्थिति में रखा जाए, यह दर्शकों को जोड़ सकती है। उनके मुताबिक, “जब तक सिनेमा इंसान के भीतर की भावनाओं और उसके संघर्षों को नहीं दर्शाता, तब तक वह केवल मनोरंजन भर रह जाता है।”
भारतीय सिनेमा की दिशा पर खुली बहस
वर्मा के इस बयान ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक नई बहस को जन्म दे दिया है कि क्या आज का सिनेमा वास्तविकता से दूर होकर केवल तकनीक और पैसा-केंद्रित बन चुका है। कई फिल्म प्रेमी और इंडस्ट्री ट्रैकर्स वर्मा की बात से सहमत हैं कि समय आ गया है जब बड़े बजट और पैन इंडिया टैग से ज्यादा कहानी और सादगी को महत्व दिया जाए।
