घातक नहीं, चुस्ती-स्फूर्तिदायक भी होती हैं चाय की चुस्कियां

-सीताराम गुप्ता
हमारे यहाँ चाय को स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक तथा नशे का साधन माना जाता है और इससे बचने की सलाह दी
जाती है। सबसे पहले तो चाय के विषय में हमने जो ग़लत धारणा बना रखी है उसको दूर करना ज़रूरी है। चाय मात्रा एक
हानिकारक पेय नहीं अपितु यह एक उपयोगी पेय भी है। चाय एक पौधे विशेष की पत्तियाँ ही तो हैं जिन्हें सुखाकर एक
विशेष रंग और स्वाद दिया गया है।
किसी भी पौधे की पत्तियों का अर्क या क्वाथ सदैव हानिकारक कैसे हो सकता है लेकिन फिर भी कई बार चाय पीना
स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता और इसका प्रमुख कारण है चाय की तैयार सूखी पत्ती या पेय बनाने की विधि में
त्रुटि या कमी।
चाय की प्रमुख वैरायटी:
रंग के अनुसार चाय की प्रमुख रूप से तीन वैरायटी तैयार की जाती हैंः
1 हरी चाय
2 काली चाय
3 ऊलांग चाय
उपरोक्त में से हरी चाय या ग्रीन टी लीव्ज़ में किसी प्रकार के रंग या स्वाद का मिश्रण नहीं किया जाता। इसमें ताज़ा
पत्तियों को मात्रा सुखाकर पैक कर दिया जाता है और किसी भी प्रकार की कृत्रिम गंध से इसे मुक्त रखा जाता है।
प्राकृतिक पत्तियाँ होने के कारण ही इसे हरी चाय कहते हैं।
हरी चाय से पेय तैयार करने के लिए इसमें दूध नहीं मिलाया जाता। पानी उबाल कर उसमें पत्तियाँ डाल कर ढक कर रख
में आ जाता है। इसको छानकर इसमें स्वाद या आवश्यकतानुसार शहद या चीनी मिलाकर इसका सेवन किया जाता है।
इस प्रकार से निर्मित चाय न केवल चुस्ती-स्फूर्ति और ऊर्जा प्रदान करती है अपितु औषधीय गुणों से भी भरपूर होती है।
वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि इस प्रकार की चाय में कैंसररोधी गुण पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। दूसरे इस प्रकार से
तैयार बिना उबाली गई चाय में कैफीन जैसे अपेक्षाकृत मादक तत्व भी पेय में नहीं आ पाते।
दूसरे और तीसरे प्रकार की चाय की पत्ती को तैयार करने के लिए चाय की पत्तियों के अतिरिक्त बाहर से कई और चीज़ें
मिलाकर उसके रंग और स्वाद को बदला जाता है। यदि ब्लैंडिंग की इस प्रक्रिया में कोई मादक पदार्थ प्रयोग में लाया जाता
है तो वह अवश्य ही अपना प्रभाव डालेगा। इस प्रकार आज बाज़ार में अनेक तरह की चाय की पत्तियाँ उपलब्ध हैं।
काली या ऊलांग चाय की पत्ती से भी चाय तैयार करने की भी सही विधि यही है कि चाय की पत्तियों को उबलते पानी में
भिगोकर थोड़ी देर बाद उसे छान लिया जाए और उसमें गरम दूध और चीनी मिलाकर उसका इस्तेमाल किया जाए। इससे
भी हानिकारक तत्व पेय में नहीं आ पाएँगे। कुछ लोग विशुद्ध हरी चाय की पत्ती से तैयार पेय पसंद नहीं करते तो कुछ
काली या ऊलांग चाय की पत्ती से तैयार पेय पसंद नहीं करते। इसका सबसे अच्छा उपाय है दोनों प्रकार की पत्तियों को
अपनी पसंद के अनुसार मिलाकर प्रयोग किया जाए।
कुछ लोग चाय को बहुत पसंद करते हैं लेकिन कुछ लोग इसे न केवल घातक पेय मानते हैं अपितु चाय को भारतीय
संस्कृति के खि़लाफ़ भी मानते हैं। क्या चाय वास्तव में भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल और घातक है? हमारे यहाँ वैदिक
काल से ही विभिन्न रोगों के उपचार के लिए क्वाथ या काढ़ा बनाकर पीने का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद में विभिन्न प्रकार
की जड़ी-बूटियों अथवा वनस्पतिजन्य पदार्र्थों से क्वाथ बनाने का वर्णन मिलता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में जोशींदा
भी विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों को उबालकर ही बनाया जाता है।
काली मिर्च, लौंग, बड़ी और छोटी इलायची, सौंठ या अदरक, पीपल, मुलहठी, उन्नाब, बनफ्शा आदि विभिन्न जड़ी-बूटियों
और मसालों को उबालकर काढ़ा बनाने का प्रचलन आज भी हमारे यहाँ ख़ूब प्रचलित है। सर्दी-ज़ुकाम के उपचार के लिए तो
इससे उपयोगी औषधि हो ही नहीं सकती। इसी प्रकार चाय में भी अनेक औषधीय गुण विद्यमान हैं जो शरीर को चुस्ती-
स्फूर्ति देने के साथ-साथ अनेक प्रकार के रोगों को रोकने अथवा उनका उपचार करने में सक्षम हैं।
चाय का सेवन हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में भी सहायक होता है। अगर शरीर में पॉलीफिनॉल्स की पर्याप्त
मात्रा हो तो इससे याददाश्त की कमी का ख़तरा कम हो जाता है। ताज़ा अनुसंधानों से यह बात स्पष्ट होती है कि फल,
चाय, कॉफी आदि पेय पदार्थ शरीर में पॉलीफिनॉल्स के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इस प्रकार चाय हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त
रखने में भी सहायक होती है।
दिन भर में तीन-चार कप चाय पीजिए और हृदय रोगों, स्ट्रोक, त्वचा रोगों तथा कैंसर जैसे रोगों को दूर भगाइए। प्रतिदिन
तीन-चार कप चाय पीने से हृदय विकारों की संभावना दस प्रतिशत से भी ज़्यादा कम हो जाती है। चाय में उपस्थित
एंटीऑक्सीडेंट हमारी रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि कर हमें निरोग बनाए रखने में सक्षम होते हैं तथा रोग की दशा में
शीघ्र रोगमुक्ति में सहायक होते हैं।
चाय में उपस्थित तैलीय तत्व हमारे पाचन में भी सहायक होते हैं। चाय डिहाइड्रेशन दूर करने, दाँतों को मजबूत बनाने तथा
कोलेस्ट्रॉल को रोकने में भी सक्षम है। चाय में मौजूद कैफीन नामक तत्व सरदर्द से मुक्ति प्रदान कर हमें प्रफुल्ल तथा
स्वस्थ बनाता है। ग्रीन टी तथा बिना दूध की काली चाय अथवा ब्लैक टी से वज़न कम करने और मोटापा रोकने में भी
सहायता मिलती है।
चाय को सदैव एक ही तरीक़े से बनाकर पीने की बजाए अलग-अलग तरीक़ों से बनाकर पीना अच्छा है। कभी दूध की चाय
लें तो कभी बिना दूध की, कभी चाय पत्ती उबाल कर तो कभी बिना पत्ती उबाले बिना दूध के नींबू की चाय आज़माएँ। दिन
में एक या दो बार बिना दूध की बिना उबली सादी या नींबू की चाय अवश्य लें क्योंकि यह एक पेय ही नहीं, उत्तम औषधि
भी है।
चाय को स्वदेशी रूप प्रदान करने के लिए कभी उसमें तुलसी की पत्तियाँ डाल लें तो कभी इलायची, कभी दालचीनी तो कभी
सौंफ। गला ख़राब है तो गरम पानी में नमक डालकर गरारे करें और साथ ही चाय में भी थोड़ा नमक डालकर पिएँ।
सचमुच चाय हानिकारक ही नहीं अपितु एक अच्छा पेय भी है क्योंकि इसमें गरमी और मिठास के साथ-साथ मौजूद हैं
चुस्ती-स्फूर्ति और उपचार प्रदान करने वाले तत्व भी। (स्वास्थ्य दर्पण)
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