पीएम मोदी ने 'मन की बात' में यश सालुंड्के को सराहा, जो संस्कृत में क्रिकेट सिखा रहे हैं


उस युग में अध्ययन और शोध संस्कृत में ही किए जाते थे। नाट्य मंचन भी संस्कृत में ही होते थे, लेकिन दुर्भाग्य से गुलामी के कालखंड में भी और आजादी के बाद भी संस्कृत लगातार उपेक्षा का शिकार हुई। इस वजह से युवा पीढ़ियों में संस्कृत के प्रति आकर्षण भी कम होता चला गया, लेकिन अब समय बदल रहा है। संस्कृत का भी समय भी बदल रहा है। संस्कृति और सोशल मीडिया की दुनिया ने संस्कृत को नई प्राणवायु दे दी है। उन्होंने कहा, "इन दिनों कई युवा संस्कृत को लेकर बहुत रोचक काम कर रहे हैं।
आप सोशल मीडिया पर जाएंगे, तो आपको ऐसी कई रील्स दिखेगी, जहां कई युवा संस्कृत में और संस्कृत के बारे में बात करते दिखाई देंगे। कई लोग अपने सोशल मीडिया चैनल के जरिए संस्कृत सिखाते भी हैं। ऐसे ही एक युवा कंटेंट क्रिएटर हैं- यश सालुंड्के। यश की खास बात ये है कि वो कंटेंट क्रिएटर भी हैं और क्रिकेटर भी हैं। संस्कृत में बात करते हुए क्रिकेट खेलने की उनकी रील्स लोगों ने खूब पसंद की है।"
इसके साथ ही यश सालुंड्के की एक रील्स भी इस कार्यक्रम में सुनाई गई, जिसमें वह कहते हैं- पश्यतु! अहं कथं क्रीडामि (देखो! मैं कैसे खेलता हूं)। इसके बाद यश बैटिंग तकनीक के बारे में सिखाते हैं। इस वीडियो में यश संस्कृत में ही बात करते नजर आते हैं। वह कहते हैं- "भ्रात: नूतनं कन्दुकं गृह्णातु (भाई: एक नई गेंद ले आओ)। इमं कन्दुकं सावधानेन पश्य च षटकाय ताडय (इस गेंद को ध्यान से देखो और छक्का मारो)।" संस्कृत का इस तरीके से प्रसार काफी लोकप्रिय हो रहा है।
