“मेरठ कॉलेज में ‘भारतीय संविधान और मुस्लिम समुदाय’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित”
मेरठ। शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा “भारतीय संविधान और मुस्लिम समुदाय” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कई विद्वानों ने संविधान निर्माण में मुस्लिम नेताओं की भूमिका पर प्रकाश डाला। मुजफ्फरनगर में महिला मोर्चा अध्यक्ष से ही जेई ने मांगी रिश्वत, क्रांतिसेना भड़की, बिजलीघर का […]
मेरठ। शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा “भारतीय संविधान और मुस्लिम समुदाय” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कई विद्वानों ने संविधान निर्माण में मुस्लिम नेताओं की भूमिका पर प्रकाश डाला।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर प्रमोद पांडे ने कहा कि भारतीय संविधान का निर्माण केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं था, बल्कि यह विविध समुदायों के बीच एक नैतिक अनुबंध था — उपनिवेशवाद की साझा पीड़ा और समावेशी राष्ट्र की साझी आकांक्षा का प्रतीक। उन्होंने कहा कि जब भारत विभाजन और एकता के मोड़ पर खड़ा था, तब कई मुस्लिम नेताओं ने सांप्रदायिक अलगाव नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष संविधान का रास्ता चुना।
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प्रो. पांडे ने विशेष रूप से मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के योगदान का उल्लेख किया। वह न केवल स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे, बल्कि एक गहरे धर्मनिरपेक्ष विचारक और भारत के पहले शिक्षा मंत्री भी थे। संविधान सभा में उनके विचारों ने अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 30 (अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के अधिकार) जैसे प्रावधानों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज़ाद मानते थे कि भारत की एकता किसी एक धर्म या विचारधारा पर नहीं, बल्कि साझे इतिहास और परस्पर सम्मान पर आधारित होनी चाहिए।
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कार्यक्रम में जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली से आए पत्रकारिता अध्ययन के फ़्रैंकोफ़ोन इंशा वारसी ने भी विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद ने शिक्षा नीति के निर्माण में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) जैसे संस्थानों की नींव रखी गई। उन्होंने कहा, “मन से दी गई शिक्षा समाज में क्रांति ला सकती है।”
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इसके अलावा, संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य बेगम ऐज़ाज़ रसूल के योगदान पर भी चर्चा हुई। उन्होंने लैंगिक समानता और अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी की और संयुक्त चुनाव प्रणाली की पक्षधर रहीं, जो आज भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद मानी जाती है।
कार्यक्रम में राकेश सिंह, महिमा रानी, रेशमा खान, और शबाना समेत कई वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
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