शांति नहीं तो क्रांति से आता है लोकतंत्र

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आज दुनिया में कई तरह की शासन प्रणालियां है जिनमें तानाशाही से लेकर राजवंश और व्यक्ति या विचारधारा केंद्रित शासन भी शामिल है लेकिन दुनिया की सर्वोत्तम शासन शैली का नाम है लोकतंत्र। लोकतंत्र एक ऐसी शासन शैली है, जिसमें जनता की इच्छा सर्वोपरि होती है। यह "जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता के शासन" की अवधारणा  है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत  यह है कि यह हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति का अधिकार  और शासन में भागीदारी का अवसर देता है और उन्हें भरोसा दिलाता है कि सत्ता किसी एक व्यक्ति या वर्ग की बपौती नहीं है। 

 

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जब जब किसी खास वर्ग या शासक ने लोकतंत्र में मनमानी करने की हिमाकत की है तो उसका पतन हुआ है।  जन आकांक्षाओं की पूर्ति के बजाय अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे हुए शासक को जनता माफ नहीं करती और उखाड़ फेंकती है । यदि चुनाव के माध्यम से ऐसा नहीं होता तो फिर क्रांति के माध्यम से यह किया जाता है जैसा कि अभी हमने श्रीलंका बांग्लादेश और नेपाल में देखा। 

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लोकतंत्र के आविर्भाव से पहले दुनिया भर में अलग-अलग रंगों रूपों की राजशाही का राज था जिसमें सब कुछ केवल और केवल राजा या राजवंश की इच्छा के अनुसार ही होता था. उससे त्रस्त होकर ही लोकतंत्र अस्तित्व में आया। 

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 जहां राजतंत्र ऑटोक्रेसी यानी एक तंत्रवादी होता है, वहीं लोकतंत्र नागरिकों को अभिव्यक्ति, संगठन और विरोध का अधिकार देता है। लोकतांत्रिक शासन में व्यक्ति की गरिमा, समानता और न्याय का सर्वोच्च स्थान  है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जाति, धर्म, लिंग या नस्ल से परे सबको समान अवसर मिलते हैं और  शासक वर्ग जनता के प्रति जवाबदेह होता है जिससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण संभव होता है। विभिन्न विचारों, मतों और समूहों के बीच संतुलन बनाना ही लोकतंत्र की असली शक्ति है। 

 

    जब लोकतंत्र के आविर्भाव की बात आती है तो भारत को भी लोकतंत्र का संस्थापक माना जाता है लेकिन ऐतिहासिक तथ्य बताते  हैं कि लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन ग्रीस में पाई गईं जहाँ एथेंस नगर-राज्य में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की अवधारणा विकसित हुई थी। भारत में भी वैदिक कालीन सभाओं, सभा और समिति – को प्रारंभिक लोकतांत्रिक संस्थाओं का रूप माना जाता है। आधुनिक लोकतंत्र का विकास यूरोप में पुनर्जागरण, सुधार आंदोलन और औद्योगिक क्रांति के बाद हुआ। अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम और फ्रांस की क्रांति ने लोकतंत्र की विश्वव्यापी नींव रखी, यानी लोकतंत्र क्रांति के माध्यम से भी आता है और शांति के माध्यम से भी ।

 

कोई भी शासन व्यवस्था लंबे समय तक तभी टिक सकती है जब उसमें कुछ खास गुण हों. यदि लोकतंत्र लंबे समय से टिका हुआ है और आगे बढ़ रहा है तो इसके पीछे लोकतंत्र के गुण ही हैं ।

 

    लोकतंत्र का सबसे बड़ा गुण है जनसहभागिता। लोकतंत्र में नीतियाँ जनमत पर आधारित होती हैं और यह संवाद और समझौते के माध्यम से संघर्ष का समाधान करता है। लोकतांत्रिक शासन में नीतियाँ अधिक स्वीकार्य होती हैं जिससे स्थिरता और दीर्घकालिक विकास संभव होता है। लोकतंत्र नागरिकों को अधिकार तो देता ही है, साथ ही कर्तव्यों के निर्वहन की अपेक्षा भी करता है। 

   भले ही लोकतंत्र में कितने भी गुण क्यों न हों हो इसकी कुछ सीमाएं एवं कमियां भी हैं. लोकतंत्र  का प्रमुख अवगुण है पापुलरिज्म यानी  लोकप्रियतावाद । अल्पकालिक लाभ के लिए राजनीतिक दल लोकलुभावन नीतियाँ अपनाते हैं जिससे दीर्घकालिक आर्थिक क्षति होती है। वोटो के लिए समाज का ध्रुवीकरण करना और  जातीय, धार्मिक या भाषाई आधार पर वोट माँगना भी लोकतंत्र को कमजोर करता है।

 

   चुनावी राजनीति में धनबल और बाहुबल का बढ़ता प्रभाव लोकतंत्र को दूषित कर देता है। संक्षेप में कहें तो भ्रष्टाचार लोकतंत्र की जड़ों में लगा हुआ वह घुन है जो इसे अंदर ही अंदर खा जाता है. इसकी दूसरी कमजोरी है आम सहमति का अभाव होना. लोकतंत्र में सहमति बनाने की लंबी प्रक्रिया से नीतियाँ लागू करने में देर होती है। आज के डिजिटल युग में गलत सूचना जनमत को आसानी से भटका सकती है जिसका उदाहरण हालिया वर्षों में विभिन्न देशों में हुई जैन क्रांतियां हैं ।

 

    पिछले एक दशक में कई देशों में लोकतंत्र के लिए संघर्ष हुए हैं, जिन्होंने दुनिया का ध्यान खींचा है जिनमें अरब स्प्रिंग (2010-2012)  ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया, यमन में जनता ने तानाशाही शासन के खिलाफ विद्रोह किया तो हांगकांग आंदोलन (2019) में नागरिकों ने स्वतंत्रता और स्वायत्तता की रक्षा के लिए संघर्ष किया। वहीं म्यांमार (2021) में सैन्य तख्तापलट के बाद लोकतंत्र समर्थक आंदोलन हुए लेकिन वहां की लोकतांत्रिक नेता शू आन ची लंबे समय तक या तो जेल में रही या उन्हें घर में ही नज़रबंद करके रखा गया।  ईरान और रूस में भी विरोध  नागरिकों ने राजनीतिक स्वतंत्रता और अधिकारों की माँग को लेकर आवाज़ उठाई। और अभी पिछले 5 वर्षों में ही श्रीलंका, बांग्लादेश एवं अभी हाल में नेपाल में हुई क्रांतियां में भी लोकतंत्र का अलग ही चेहरा  देखने को मिला। वहीं पाकिस्तान जैसे देशों में लोकतंत्र का छद्म चेहरा भी सबके सामने है.

 

  भले ही लोकतंत्र में कितनी ही कमजोरियां क्यों न हों लेकिन  लोकतंत्र की चाह वैश्विक है और जब भी जनता को दमन का सामना करना पड़ता है, वे सड़कों पर उतरने से नहीं हिचकिचाती। 

  कई बार लोकतंत्र के भविष्य पर भी सवाल उठते हैं. सच बात तो यह है कि लोकतंत्र का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि यह किस प्रकार अपनी कमियों को दूर करता है। केवल परंपरागत लोकतंत्र अपनाने से कुछ नहीं होगा बल्कि डिजिटल लोकतंत्र, ई-गवर्नेंस और पारदर्शी ऑनलाइन मतदान से लोकतंत्र और मजबूत होगा। नागरिकों में राजनीतिक साक्षरता बढ़ाने से वे जिम्मेदार मतदान कर पाएँगे। न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता बहुत मायने रखती है. यदि यह दोनों स्तंभ निष्पक्ष होकर स्वतंत्र तरीके से कार्य करें तो लोकतंत्र के प्रहरी बने रहेंगे लेकिन पक्षपात पूर्ण तरीके से किया गया न्याय या फिर सूचनाओं का प्रसारण लोकतंत्र के लिए बहुत हानिकारक भी है।युवा शक्ति की भागीदारी व उसे निर्णय-प्रक्रिया में शामिल करना लोकतंत्र को अधिक ऊर्जावान बनाएगा। लोकतंत्र की सफलता केवल संविधान या चुनाव पर नहीं बल्कि जनसहभागिता, जवाबदेही और पारदर्शिता पर निर्भर करती है। हमें इसकी कमजोरियों को दूर करके लोकतांत्रिक संस्थाओं को सशक्त करना होगा और निश्चित करना होगा कि लोकतंत्र वास्तव में नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करे। 

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-डॉ घनश्याम बादल 

 

 

 

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