कम पानी में करें चने की खेती, राइजोबियम से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं, पाएं 20 क्विंटल उपज और लाखों का मुनाफा, जानिए पूरी प्रक्रिया और फायदा
जैसे-जैसे सर्दी का मौसम आता है वैसे-वैसे रबी सीजन की फसलों की तैयारियां भी तेज़ हो जाती हैं। अगर आप सोच रहे हैं कि इस बार कौन सी फसल बोई जाए जो कम पानी में भी अच्छा मुनाफा दे, तो आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसी फसल की जो किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रही है चना की खेती
चना की खेती के लिए दोमट या मध्यम प्रकार की मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। अगर खेत में जैविक पदार्थों की भरपूर मात्रा हो तो दाने अधिक भरे और स्वादिष्ट बनते हैं। बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई कर उसमें गोबर की खाद या कंपोस्ट डालना बेहद लाभदायक रहता है। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों को ज़रूरी पोषण मिलता है।
इस फसल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। केवल दो से तीन बार पानी देना ही पर्याप्त होता है, जिसमें पहली सिंचाई फूल आने के समय और दूसरी दाने भरने के दौरान करनी चाहिए। अगर जरूरत से ज़्यादा पानी दे दिया जाए तो फसल में कीट और रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
चना फली छेदक कीट और उकठा रोग से प्रभावित हो सकता है, लेकिन इसका हल भी आसान है। किसान भाई अगर नीम आधारित घोल या जैविक कीटनाशक का छिड़काव करें तो फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है। इसके अलावा रासायनिक दवाओं का अधिक प्रयोग न करें, क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरता घटती है और भविष्य की फसलों पर भी असर पड़ता है।
चना की खेती सिर्फ लाभदायक ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है। इसकी जड़ों में मौजूद राइजोबियम बैक्टीरिया मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिर करके उसकी उर्वरता को बढ़ाते हैं। यानी एक बार चना की खेती करने से अगली फसल के लिए खेत और भी उपजाऊ बन जाता है।
अगर सही समय पर बुवाई और देखभाल की जाए तो किसान भाइयों को प्रति हेक्टेयर 18 से 20 क्विंटल तक की उपज आसानी से मिल सकती है। यानी कम पानी, कम खर्च और ज्यादा मुनाफा — यही है चना की खेती का असली फायदा। इसलिए इस बार ठंडी के मौसम में चना बोइए और अपनी मेहनत का दोगुना फल पाइए।
