बैंक FD का 'स्वर्णिम युग': रेपो रेट कटौती के बावजूद 8% तक ब्याज, कासा टूटने से बैंक परेशान



शेयर बाजार से तीन गुना अधिक रिटर्न
जमा और कर्ज के बाज़ार में यह शायद पहली बार हो रहा है कि बैंक, रिज़र्व बैंक की नीतिगत दरों पर तत्काल प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। आरबीआई ने रेपो रेट में 1% की कटौती की, जिसके बाद सामान्य तौर पर बैंक जमा पर ब्याज दर कम हो जानी चाहिए थी। मगर, बैंकों ने न केवल एफडी पर ऊंची ब्याज दरें बरकरार रखी हैं, बल्कि वे विशेष एफडी स्कीम (जैसे 444 दिन और इससे अधिक की अवधि) को और भी आकर्षक बना रहे हैं।
वरिष्ठ नागरिकों को तो विशेष रूप से ऊंची ब्याज दर की पेशकश की जा रही है। एफडी का आकर्षण तब और भी बढ़ जाता है जब हम इसकी तुलना शेयर बाज़ार के रिटर्न से करते हैं। इस साल 16 अक्टूबर तक निफ्टी और सेंसेक्स का रिटर्न 2.5 फीसदी से नीचे रहा है, जबकि कई छोटे बैंक एफडी पर 8 फीसदी तक का ब्याज दे रहे हैं, जो शेयर बाज़ार के रिटर्न से तीन गुना से भी ज़्यादा है।
बैंकों के लिए जमा जुटाना बना चुनौती
सवाल उठता है कि बैंक ऐसा क्यों कर रहे हैं? रेपो दर में कटौती के बाद, बैंकों के लिए कम लागत वाली जमा (करेंट अकाउंट-सेविंग अकाउंट यानी कासा) जुटाना मुश्किल हो गया है। कई बैंकों का कासा (CASA) अनुपात 2 से 11 फीसदी तक (अलग-अलग बैंक) गिर गया है। बैंक अब अपनी बढ़ती कर्ज की मांग को पूरा करने के लिए एफडी से जमा पर निर्भर हो गए हैं।
इसका एक बड़ा कारण यह है कि ऊंचे रिटर्न की उम्मीद में घरेलू बचत अब बैंकों में जमा होने के बजाय म्यूचुअल फंड्स जैसे विकल्पों में जा रही है। आरबीआई के अनुसार, ऋण (Loan) और जमा (Deposit) वृद्धि के बीच का अंतर लगातार बढ़ रहा है। 19 सितंबर को समाप्त पखवाड़े में जमा वृद्धि दर 9.5% रही, जबकि ऋण वृद्धि दर 10.4% थी। आने वाली तिमाहियों में कर्ज की मांग बढ़ने की उम्मीद है, ऐसे में एफडी पर ज़्यादा ब्याज दर दिए बिना बैंकों के लिए पर्याप्त जमा जुटाना संभव नहीं है।
एफडी लॉक करने का सही समय और रणनीति
सुरक्षा, स्थिरता और पूर्व अनुमानित आय की वजह से फिक्स्ड डिपॉजिट विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों और उन लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प है, जो अपने नियमित खर्चों के लिए ब्याज आय पर निर्भर हैं। हालांकि, निवेशकों को एफडी पर मिलने वाले ब्याज की कर-योग्यता (Taxability) का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अधिक राशि वाली एफडी पर प्रभावी रिटर्न टैक्स के बाद कम हो सकता है।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सारा पैसा एक ही एफडी में न रखें। निवेश को अलग-अलग अवधि, जैसे 1, 3 और 5 साल में बांटना चाहिए। इससे कुछ पैसा जल्दी मैच्योर होकर उपलब्ध होगा, जबकि लंबी अवधि की एफडी मौजूदा उच्च दर पर लॉक रहेगी। मनीट्री के सह-संस्थापक सिद्धार्थ शर्मा जैसे विशेषज्ञ बताते हैं कि महंगाई घटकर 1.54 फीसदी तक आ गई है, और आरबीआई आने वाले महीनों में दरों में और कटौती कर सकता है। इसलिए, सुरक्षित और सुनिश्चित रिटर्न के लिए, लंबी अवधि की एफडी को इसी समय उच्च ब्याज दर पर लॉक कर लेना समझदारी है।