भारत का पहला परमाणु रिएक्टर ‘अप्सरा’: आत्मनिर्भर ऊर्जा की शुरुआत की कहानी

नई दिल्ली। ठीक 69 साल पहले 4 अगस्त 1956 को भारत ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया था। मुंबई के ट्रॉम्बे, जिसे अब भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र कहा जाता है, इसमें देश का पहला परमाणु अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ शुरू किया गया। यह न सिर्फ एशिया का पहला रिएक्टर था, बल्कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता और ऊर्जा […]
नई दिल्ली। ठीक 69 साल पहले 4 अगस्त 1956 को भारत ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया था। मुंबई के ट्रॉम्बे, जिसे अब भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र कहा जाता है, इसमें देश का पहला परमाणु अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ शुरू किया गया। यह न सिर्फ एशिया का पहला रिएक्टर था, बल्कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम भी था।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की वेबसाइट पर जिक्र है कि डॉ. होमी जहांगीर भाभा (डॉ. भाभा) ने देश की आजादी से पहले ही 1945 में परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) की स्थापना की थी।
दिल्ली सरकार के मयूर विहार स्थित डॉ. एच.जे. भाभा आईटीआई खिचड़ीपुर की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, देश की आजादी के अगले साल अप्रैल 1948 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. भाभा के अनुरोध पर संविधान सभा में परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित करने पर सहमति व्यक्त की, जिससे भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (आईएईसी) का गठन हुआ।
यह भारत में संगठित परमाणु अनुसंधान की औपचारिक शुरुआत थी।
परमाणु ऊर्जा विभाग के मुताबिक, डॉ. भाभा ने 1950 के दशक के शुरू में कहा था, ‘अनुसंधान रिएक्टर परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ की हड्डी होते हैं।’ इसके बाद एशिया के पहले अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ का परिचालन अगस्त 1956 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के ट्रॉम्बे परिसर में शुरू हुआ।
‘अप्सरा’ के अस्तित्व में आने के लगभग 62 सालों के बाद 10 सितंबर 2018 को ट्रॉम्बे में स्विमिंग पूल के आकार का एक शोध रिएक्टर ‘अप्सरा-उन्नत’ का परिचालन प्रारंभ हुआ। उच्च क्षमता वाले इस रिएक्टर की स्थापना स्वदेशी तकनीक से की गई।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के मुताबिक, रिएक्टर में स्वदेशी रूप से विकसित कम समृद्ध यूरेनियम (एलईयू) ईंधन यूरेनियम सिलिसाइड के रूप में उपयोग किया जाता है। पूल के शीर्ष पर गर्म पानी की परत की अवधारणा, भारत में अपनी तरह की पहली है, जो रेडिएशन की खुराक को कम करने के लिए नियोजित की जाती है।
भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर के नामकरण की कहानी भी दिलचस्प है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इसका नाम ‘अप्सरा’ रखा। ‘अप्सरा’ रिएक्टर की स्वर्ण जयंती पर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की ओर से जारी एक किताब में इसका जिक्र मिलता है।
इस किताब में एईसी के पूर्व अध्यक्ष पीके अयंगर ने लिखा था, ”पंडित नेहरू ने आयोग के सदस्य डॉ. केएस कृष्णन के साथ मिलकर इस रिएक्टर का नाम ‘अप्सरा’ रखा था, क्योंकि इसके कुंड से निकलने वाले खूबसूरत चेरेनकोव विकिरण (नीली किरणों) को देखकर ऐसा लगा था।”
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