

एआईएमटीसी ने सीएक्यूएम, दिल्ली सरकार और केंद्र के मंत्रालयों से लगातार संवाद करते हुए प्रतिबंध की समीक्षा की मांग की। संगठन ने तकनीकी विशेषज्ञों के साथ मिलकर बीएस-IV और बीएस-VI इंजनों के उत्सर्जन स्तर पर अध्ययन कराया, जिसमें पाया गया कि धीमी गति पर चलने वाले बीएस-IV इंजन बीएस-VI इंजनों के लगभग समान उत्सर्जन करते हैं।
एक आरटीआई के जरिये यह भी खुलासा हुआ कि सीएक्यूएम ने अपने इस दावे को सिद्ध करने के लिए कि बीएस-IV वाहन “अत्यधिक प्रदूषणकारी” हैं, कोई स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया था।
बेंगलुरु की एक कंपनी के साथ किए गए इंफ्रारेड और थर्मल इमेजिंग आधारित पायलट अध्ययन के शुरुआती नतीजों ने भी साबित किया कि जब यूरो-VI ईंधन और एडब्लू तकनीक का उपयोग होता है, तो बीएस-IV और बीएस-VI वाहनों के उत्सर्जन में कोई बड़ा अंतर नहीं होता।
एआईएमटीसी ने अपने पत्र में यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रतिबंध —
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छोटे ट्रांसपोर्ट ऑपरेटरों को बर्बाद कर देता, जो अब भी अपने बीएस-IV वाहनों की ईएमआई चुका रहे हैं।
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सर्वोच्च न्यायालय और एनजीटी के 10 वर्ष के परिचालन नियमों तथा परिवहन मंत्रालय की 15 वर्ष की परमिट वैधता के विपरीत है।
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किसी ठोस वैज्ञानिक डेटा पर आधारित नहीं है।
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दिल्ली की सप्लाई चेन को बाधित कर खाद्य, दवाइयों और आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता पर असर डालता।
एआईएमटीसी ने कहा कि ट्रक कोई विलासिता का साधन नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन वाहनों को दंडित करना, जिन्हें कभी “स्वच्छ विकल्प” कहकर बढ़ावा दिया गया था, अन्यायपूर्ण और असंगत है।
प्रतिबंध लागू होने से —
हजारों छोटे परिवहनकर्ताओं की आजीविका छिन जाती,
ईएमआई डिफॉल्ट और सिबिल स्कोर गिर जाता,
एमएसएमई और व्यापारियों में आर्थिक संकट गहराता,
और दिल्ली की नागरिक आपूर्ति व्यवस्था प्रभावित होती।
एआईएमटीसी ने इस राहत को सुनिश्चित कराने में अहम भूमिका निभाने के लिए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा का आभार व्यक्त किया। साथ ही मीडिया का भी धन्यवाद दिया, जिसने ट्रांसपोर्ट समुदाय की वास्तविक चिंताओं को जनता और सरकार तक पहुंचाया।
एआईएमटीसी ने कहा — “यह एक वर्ष की राहत देशभर के हजारों संघर्षरत ट्रांसपोर्टरों के लिए जीवनरेखा साबित होगी। यह समय वैज्ञानिक प्रमाणों, हितधारक संवाद और संतुलित नीति निर्माण के लिए उपयोग किया जाएगा।”