टिकट कटने से सियासी भूचाल-बांका के माननीयों की अगली चाल पर सबकी नजर


बेटिकट माननीयों की मनोदशा पर चर्चा

चार सीटों का समीकरण बदला
इस चुनाव में जिले की पांच में से चार सीटों पर उम्मीदवारों में बदलाव हुआ है। तीन सीटों पर महागठबंधन ने और एक सीट पर एनडीए ने नया उम्मीदवार उतारा है। सोमवार को जब बांका, कटोरिया और धोरैया सीट से महागठबंधन के उम्मीदवारों ने नामांकन किया, तो पुराने दिग्गज वहां से अनुपस्थित नजर आए। बेलहर क्षेत्र में भी असंतोष खुलकर सामने आया, जहां राजद के वरिष्ठ नेता मु. जुम्मन बांका और महासचिव मिठन यादव ने निर्दलीय नामांकन दाखिल कर संगठन के निर्णय पर सवाल खड़े किए।
धोरैया से नरेश दास के पुत्र मैदान में
धोरैया सुरक्षित सीट से वर्तमान राजद विधायक भूदेव चौधरी को टिकट न देने का कारण जातीय समीकरण बताया जा रहा है। उनकी जाति की कम आबादी को लेकर पार्टी ने यह जोखिम लिया है। इस सीट से राजद ने महादलित समुदाय से आने वाले पूर्व विधायक नरेश दास के पुत्र त्रिभुवन दास को उम्मीदवार बनाया है। पार्टी का मानना है कि इससे बड़े स्तर पर सामाजिक संतुलन साधने में मदद मिलेगी।
बांका सीट का सियासी इतिहास बदला
बांका सीट पर पिछले तीन दशकों से भाजपा और राजद के बीच मुख्य मुकाबला होता रहा है। डॉ. जावेद इकबाल अंसारी इस सीट का चेहरा माने जाते हैं, जो तीन बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2020 के चुनाव में वे भाजपा के रामनारायण मंडल से लगभग 17 हजार वोटों के अंतर से हार गए थे। इस बार भाजपा ने यह सीट सहयोगी पार्टी भाकपा को दी है। भाकपा की ओर से पूर्व विधान पार्षद संजय कुमार ने नामांकन दाखिल किया है, जिससे मुकाबला इस बार और रोचक हो गया है।
महिलाओं को मिला मौका
कटोरिया सीट से इस बार महागठबंधन ने राजद की पूर्व विधायक स्वीटी सीमा हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वहीं एनडीए ने भाजपा की वर्तमान विधायक डॉ. निक्की हेंब्रम की जगह नया चेहरा पुरनलाल टुडू पर दांव लगाया है। पुरनलाल के नामांकन के दिन भी निक्की दूरी बनाए रहीं। इसी तरह बेलहर से राजद उम्मीदवार चाणक्य प्रकाश रंजन के नामांकन में पूर्व विधायक रामदेव यादव भी नजर नहीं आए। पूछे जाने पर उन्होंने “नो कमेंट” कहकर चुप्पी साध ली।
विद्रोह की आहट से दल सतर्क
अब बड़ा सवाल यह है कि बेटिकट हुए ये दिग्गज क्या स्वतंत्र राह अपनाएंगे या संगठन की मर्यादा में रहेंगे। राजद और भाजपा दोनों खेमों में असंतोष की फुसफुसाहटें हैं, और सबकी निगाहें इन नेताओं पर टिक गई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जिन सीटों पर नए चेहरे मैदान में हैं, वहां असंतुष्ट नेताओं के प्रभाव से वोट ट्रांसफर पर असर पड़ सकता है। समय ही बताएगा कि ये “नजरअंदाज माननीय” सियासी समीकरणों को कितना बदल पाएंगे।