चुनावी हार के बाद लालू परिवार में भूचाल! रोहिणी आचार्य की बगावत से बिहार की सियासत में लगी आग
Bihar News: बिहार में RJD की करारी चुनावी हार के 24 घंटे बाद लालू प्रसाद यादव के परिवार में बड़ी टूट दिखी। लालू की छोटी बेटी रोहिणी आचार्य ने एक्स पर राजनीति और परिवार दोनों से नाता तोड़ने का ऐलान कर बिहार की सियासत को हिला दिया।
तेजस्वी की टीम पर उठे गंभीर सवाल
तेजस्वी की चुप्पी विपक्ष के निशाने पर
रोहिणी की नाराज़गी पर JDU नेता नीरज कुमार ने कहा कि जिस बेटी ने लालू को किडनी देकर जीवन दिया, आज वही दर्द में है और तेजस्वी चुप। विपक्ष ने इसे RJD के भीतर परिवारवाद और गुटबाज़ी का नया उदाहरण बताया।
संजय यादव और रमीज पर तीखे निशाने
रोहिणी ने तेजस्वी के करीबी सलाहकार संजय यादव और रमीज का खुलकर नाम लेते हुए कहा कि ये दोनों पार्टी को गलत दिशा में ले जा रहे हैं। तेज प्रताप पहले भी संजय पर तीखे आरोप लगा चुके हैं, जिससे विवाद और गहरा गया है।
लालू परिवार में दूसरी बड़ी टूट
इससे पहले लालू प्रसाद अपने बड़े बेटे तेज प्रताप से दूरी बना चुके थे। अब रोहिणी का पार्टी और परिवार से अलग होना बताता है कि RJD में आंतरिक तनाव चरम पर पहुंच चुका है।
मीडिया में फूटा रोहिणी का दर्द
रोहिणी ने मीडिया से कहा-मेरा कोई परिवार नहीं है, उन्होंने ही मुझे निकाल दिया।” उनका दावा है कि संजय और रमीज का नाम लेते ही उन्हें धमकियां दी जाती हैं और बदनाम किया जाता है।
BJP और NDA ने बताया सत्ता की लड़ाई का नतीजा
रोहिणी की बगावत के बाद BJP नेता मनजिंदर सिंह सिरसा और NDA के अन्य नेताओं ने कहा कि RJD की लड़ाई हमेशा से सत्ता और परिवारवाद की रही है। उन्होंने इसे पार्टी की अंदरूनी कमजोरी बताया।
कौन हैं रमीज खान?
रमीज खान तेजस्वी यादव के पुराने दोस्त और उनकी कोर टीम का अहम हिस्सा हैं। 2016 में RJD से जुड़े और उपमुख्यमंत्री कार्यालय में बैक-एंड रणनीति से लेकर चुनाव प्रबंधन तक महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं।
परिवार पर दिल दहला देने वाले आरोप
रोहिणी ने कहा कि उन्हें गालियां दी गईं और आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपने पिता को “गंदी किडनी” लगाया और बदले में करोड़ों व टिकट लिया। इस बयान ने सोशल मीडिया पर भारी विवाद खड़ा कर दिया।
तीन बहनों का पटना छोड़ना-सियासी अंदाज़ों को हवा
रोहिणी के घर छोड़ने के एक दिन बाद रागिनी, चंदा और राजलक्ष्मी यादव बच्चों के साथ दिल्ली रवाना हो गईं। भले ही इसे तय कार्यक्रम बताया जा रहा है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसकी अलग ही व्याख्या हो रही है।
