राजवाड़े की रौनक: जब होलकर रियासत में दीपावली बनती थी वैभव और शक्ति प्रदर्शन का संगम


राजसी दीपोत्सव की जगमगाहट

धनतेरस पर खजाने की पूजा
धनतेरस के दिन महाराजा स्वयं राजवाड़ा के गणेश हॉल में प्रवेश से पहले मल्हारी मार्तंड मंदिर में पूजा करते थे। इसके बाद राज्य के कोषालय में सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात और सिक्कों से सजे थालों की पूजा की जाती थी। यह न केवल धार्मिक अनुष्ठान था, बल्कि समृद्धि और आस्था का प्रतीक भी माना जाता था।
तोपों की सलामी और दीपों की जगमगाहट
राजा के आगमन से पहले किला मैदान से पाँच तोपों की सलामी दी जाती थी। जहाँ आज देवी अहिल्याबाई की प्रतिमा स्थित है, वहाँ लकड़ी की नक्काशीदार पट्टिका पर ‘श्री मल्हारी मार्तंड प्रसन्न’ और ‘श्री महालक्ष्मी प्रसन्न’ लिखा होता था। उसे दीपों से सुसज्जित किया जाता था, जिससे पूरा क्षेत्र प्रकाश से भर उठता था।
दीपावली मिलन और इनाम वितरण की परंपरा
दीपावली के अवसर पर होलकर महाराजा अपने राज्य के श्रेष्ठ कर्मचारियों को सम्मानित करते थे। राजवाड़े के दरबार में इत्र-पान का भव्य समारोह होता था, जिसमें नगर के गणमान्य लोग आमंत्रित किए जाते थे। साथ ही राजपरिवार माणिकबाग, लाल, पीली, काली और सफेद कोठियों पर भी दीप सजाते थे। मैदान में खेल-कूद और गोवर्धन पूजा के आयोजन से दीपोत्सव का आनंद कई गुना बढ़ जाता था।
रानी सराय का मीना बाजार: उत्सव का आकर्षण
दीपावली के दौरान रानी सराय (वर्तमान रीगल तिराहा) पर मीना बाजार लगता था। यहाँ महाराजा स्वयं खरीदारी करने आते थे। बाद में यह आयोजन विस्को पार्क (अब नेहरू पार्क) में स्थानांतरित कर दिया गया। यह बाजार नगरवासियों के लिए मनोरंजन और उत्सव दोनों का केंद्र था।
दुखद घटना: पटाखों से स्नेहलता राजे का निधन
अक्टूबर 1925 की दीपावली ने रियासत को गहरा दुख दिया। पटाखे फोड़ते समय महाराजा यशवंतराव होलकर की पुत्री स्नेहलता राजे का दुर्भाग्यपूर्ण निधन हो गया। इसी हादसे की स्मृति में ‘स्नेहलता गंज’ की स्थापना की गई। इसके बाद मीना बाजार का आयोजन बंद कर दिया गया।
हुकमचंद सेठ की दीपावली: व्यापार और भक्ति का संगम
होलकर शासन के बाद इंदौर में सबसे भव्य दीपावली पूजा प्रसिद्ध उद्योगपति सर सेठ हुकमचंद द्वारा सीतलामाता बाजार में आयोजित की जाती थी। उनका कार्यालय और स्ट्रांग रूम वहीं स्थित था। यहाँ कपड़ा मिलों के व्यापारी, उद्योगपति और आमजन एकत्र होते थे। भव्य आतिशबाजी, पूजा-अर्चना और मुहूर्त के सौदे इंदौर की आर्थिक और सांस्कृतिक धरोहर बन गए।