प्रवचन की शक्ति और विजयदशमी का संदेश

दहलीज पर रखा हुआ दीपक जैसे घर के भीतर और बाहर दोनों को प्रकाशित कर देता है, वैसे ही डमरू का एक ही मनका उसे दोनों ओर से गुंजा देता है। ठीक इसी प्रकार, वाक्-कला में निपुण व्यक्ति अपनी वाणी से साधारण जन और विद्वान—दोनों प्रकार के श्रोताओं को संतुष्ट कर सकता है, यदि उनमें ग्रहणशीलता हो।
आध्यात्म के प्रारंभिक चरण से अनभिज्ञ व्यक्ति हो या फिर उसके गूढ़ रहस्यों का जिज्ञासु—दोनों को संतुष्टि मिलनी चाहिए। इसी दृष्टि से हम आपके प्रिय समाचार पत्र में पिछले तीस वर्षों से प्रतिदिन ‘अनमोल वचन’ का प्रकाशन कर रहे हैं।
आज बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक विजयदशमी के पावन अवसर पर हम आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करते हैं। सुधि पाठक यदि अपने अमूल्य सुझाव देकर हमारा मार्गदर्शन करना चाहें तो उनका सदैव स्वागत है।
— अनिल रॉयल
प्रधान सम्पादक
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