परोपकार कभी निष्फल नहीं जाता , वेदों की दृष्टि से जीवन, संघर्ष और आशा की शक्ति

वेद का ऋषि परोपकार की महत्ता को समझाते हुए कहता है कि किया गया परोपकार कभी निष्फल नहीं जाता। वह इसी जन्म में अथवा अगले जन्मों में वापस लौटकर जीव के (परोपकार करने वाले के) पास पहुंचेगा। इस शरीर के पश्चात दूसरा शरीर परिवर्तित रूप होगा, प्रत्युपकार का स्थान, समय, शरीर प्रसंग बदला हुआ होगा। प्रभु के नियमों के अनुसार व्यक्ति दूसरे का मान अथवा अपमान, बुरा अथवा अच्छा, लाभ अथवा हानि, मित्रता अथवा शत्रुता करता है वस्तुत: समय के अंतराल में वह अपने लिए उसका बीज होता है, जो समय आने पर बढता-फूलता एवं फलता है जीवन संघर्षों से भरा है। संघर्षों के मध्य हम स्वयं को कितना संतुलित संयमित रख पाते हैं इसी में हमारी असली परीक्षा है। विपत्ति काल में अनेक समस्याएं हमारे साहस और शक्ति को चुनौती देती है, जो हमें विचलित करने का प्रयास करती है। कठिनाईयों पर विजय पाना है, हार नहीं माननी है। नर हो तो निराश करो न मन को। निराश न हो आशावादी बने रहे। आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं जाती। विपत्ति काल में भी जो बन पड़े किसी का उपकार तो कर दें पर भूलकर भी किसी को हानि न पहुंचाये किसी का अपकार न करें।