सच्चिदानन्द स्वरूप को जगत का आधार मानते हुए प्रभु की महिमा का विस्तृत चिंतन किया जाता है। धर्मग्रंथों और साधना में इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में माना जाता है। इसके साथ ही यह माना जाता है कि प्रभु दुर्गा, दुर्ग विनाशिनी और परम सत्ता के रूप में सर्वत्र व्याप्त हैं।
अनेक नामों और रूपों में प्रभु का ध्यान करने से मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है। जीव इस संसार में भोग करने आते हैं और जीवन के समस्त क्रियाकलापों के बाद प्रभु की गोद में लौटते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार प्रभु के अटल नियमों में संयोग और वियोग दोनों सुनिश्चित हैं। जो अच्छा करेगा, उसे अच्छा फल मिलेगा और जो बुरा करेगा, उसे दुख का सामना करना पड़ेगा।
भक्त प्रार्थना करते हैं कि उन्हें ऐसी सद्बुद्धि प्राप्त हो कि वे केवल शुभ कर्म करते रहें। यही ध्यान और साधना जीवन को पुण्य और फलदायक बनाती है। वाणी में मधुरता बनी रहे, हृदय में करुणा और दया का भाव रहे, और प्रत्येक कर्म शुभ फल प्रदान करे।
ध्यान और प्रार्थना से मनुष्य अपने जीवन को प्रभु की कृपा और दया से परिपूर्ण कर सकता है। इसे अपनाने से व्यक्ति का हर दिन शुभ बनता है और उसे सम्पूर्ण संसार के प्रति स्नेह और अपनत्व की अनुभूति होती है।