धर्म का पहला लक्षण है धैर्य — सच्चा धार्मिक वही जो क्षमाशील और संयमी हो
धर्म के दस लक्षणों में सबसे प्रमुख लक्षण धैर्य है। वास्तव में वही व्यक्ति धार्मिक कहलाने योग्य है, जो हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखता है। विपत्ति हो या सुख-समृद्धि, अपमान हो या सम्मान, हानि हो या लाभ — जो व्यक्ति अपने मन की स्थिरता नहीं खोता, वह सच्चे अर्थों में धार्मिक है।
धार्मिक व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखता है। वह संयमित रहता है, दोषों को अपने भीतर प्रवेश नहीं करने देता। उसमें विनम्रता होती है, अहंकार नहीं। बाहरी आचरण के साथ उसका अंतरमन भी पवित्र होता है।
धार्मिकता का एक और महत्वपूर्ण लक्षण है — अपरिग्रह और निःस्वार्थता। ऐसा व्यक्ति दूसरे के धन को हड़पने का विचार न जागृत अवस्था में करता है, न स्वप्न में भी। जिसने क्रोध पर विजय पा ली हो और जो दूसरों की उन्नति देखकर ईर्ष्या न करे, बल्कि उसमें प्रसन्न हो जाए — वही वास्तव में धर्मात्मा कहलाता है।
सिर्फ़ मंदिर जाना, पूजा-पाठ करना या धार्मिक कर्मकांडों का पालन करना धर्म नहीं है। जब तक किसी व्यक्ति के भीतर धैर्य, क्षमा, संयम, विनम्रता, पवित्रता, दया और सहानुभूति का भाव नहीं आता — तब तक वह धर्म का केवल बाहरी आवरण ओढ़े रहता है, सार नहीं।
