दीपावली, जो अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का पर्व है, अब अपनी वास्तविक भावना से दूर होती जा रही है। 'तमसो मा ज्योर्तिगमय' — अर्थात अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर बढ़ना — यह दीपावली का सार है। इस पर्व पर धन-सम्पत्ति की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है और दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। दीपों की रोशनी न केवल वातावरण को प्रकाशित करती है, बल्कि दूषित विचारों को हटाकर स्वच्छ विचारों को बढ़ावा भी देती है।
लेकिन अफसोस की बात है कि आज दीपावली का संदेश पटाखों के धुएं और धमाकों में दब सा गया है। पटाखों के फटने का तात्पर्य अपनी मेहनत की कमाई को जलाना ही है। इस प्रवृत्ति पर रोक लगाना अति आवश्यक है। पटाखों के कारण अनेक दुर्घटनाएं होती हैं, जिसमें कई लोग बहरे हो जाते हैं, बच्चों की आंखें खराब हो जाती हैं और कई बार पटाखों की दुकानों में आग लगने से भारी आर्थिक नुकसान के साथ-साथ जान-माल की हानि भी होती है।
वायु प्रदूषण का स्तर भी पटाखों के कारण बेहद बढ़ जाता है, जिससे कई लोगों को श्वास संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ता है। आजकल अधिकांश पटाखे चीन से आयातित होते हैं, जो अत्यंत जहरीले होते हैं। ऐसे में यह चिंताजनक है कि हम अपने दुश्मन की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं, जो एक तरह से देशद्रोह के समान है।
पटाखे हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं हैं। दीपावली का पर्व करीब साढ़े नौ लाख वर्षों से मनाया जा रहा है, जबकि पटाखों का प्रचलन मुगल काल से शुरू हुआ। अतः अब समय आ गया है कि पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए और हम दीपावली के सच्चे संदेश को अपनाएं — प्रकाश, शांति और स्वच्छता का पर्व।