नफरत और दुश्मनी की आग भड़काने वालों के लिए इस देश में कोई जगह नहीं: मौलाना मदनी

नई दिल्ली/गुवाहाटी । जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने असम की राजधानी गुवाहाटी में प्रेस वार्ता कर राज्य में हालिया बेदखली और पुलिस प्रशासनिक कार्रवाइयों पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यह कदम न केवल मानवीय मूल्यों के खिलाफ हैं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी उल्लंघन करते हैं।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के "बांग्लादेश भेजने" वाले बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए मौलाना मदनी ने कहा, "मैं कल से असम में हूं, अगर मुख्यमंत्री चाहें तो मुझे बांग्लादेश भेज दें। लेकिन सवाल यह है कि जब मेरे पूर्वजों ने स्वतंत्रता संग्राम में कुर्बानियां दीं और जेलों की यातनाएं सहीं, तब भी मुझे विदेशी कहा जा सकता है, तो आम मुसलमानों के साथ कैसा व्यवहार होगा?"
उन्होंने जोर देकर कहा कि नफरत फैलाने वाले लोगों का इस देश में कोई स्थान नहीं है। "भारत का हजारों साल पुराना इतिहास है, इसकी गरिमा है। जो लोग इसे खराब करना चाहते हैं, उन्हें यहां रहने का कोई अधिकार नहीं। ऐसे लोग पाकिस्तान चले जाएं," मदनी ने कहा।
स्थानीय शिकायतों पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि अतिक्रमण के कारण अगर नामघर (असमिया धार्मिक स्थल) की भूमि प्रभावित हो रही है, तो यह उतना ही गंभीर है जितना मस्जिद पर असर पड़ना। उन्होंने कहा कि असम की संस्कृति संत शंकर देव और अज़ान फकीर दोनों की संयुक्त धरोहर है, इसलिए दोनों ही धार्मिक स्थलों की सुरक्षा आवश्यक है।
जमीअत के इतिहास का जिक्र करते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि संगठन ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हमेशा "दो-राष्ट्र सिद्धांत" का विरोध किया। उन्होंने कहा कि जमीअत आज भी राष्ट्र निर्माण को धर्म से ऊपर उठकर मानवीय और संवैधानिक मूल्यों के आधार पर देखती है।
प्रेस वार्ता में जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना मोहम्मद हकीमुद्दीन कासमी, जमीअत उलमा-ए-असम के सचिव मौलाना अब्दुल कादिर, मौलाना फजलुल करीम सहित कई पदाधिकारी मौजूद रहे। इस दौरान बताया गया कि जमीअत ने असम के धुबरी जिले में प्रभावित 300 परिवारों को आवश्यक वस्तुएं वितरित की हैं।
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