सुप्रीम कोर्ट का फैसला, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने की अधिकतम सीमा छह माह की तय

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की शिकायतें अधिकतम छह माह के भीतर ही दर्ज की जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि पोश (POSH) अधिनियम की धारा 9 के तहत शिकायत आखिरी घटना की तारीख से तीन माह के भीतर दर्ज करनी अनिवार्य है, जबकि विशेष परिस्थितियों में यह अवधि तीन माह और बढ़ाई जा सकती है। यानी कुल मिलाकर अधिकतम छह माह का समय दिया गया है।
शिकायतकर्ता की याचिका पर उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने शिकायत को बहाल किया था, लेकिन खंडपीठ ने इसे फिर खारिज कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने खंडपीठ के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि शिकायत समय सीमा समाप्त होने के कारण खारिज किए जाने योग्य है।
पीठ ने कहा, “गलती करने वाले को माफ करना उचित है, लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए। हालांकि तकनीकी आधार पर शिकायत की जांच नहीं हो सकती, लेकिन घटना को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता।”
अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने खुद स्वीकार किया था कि शिकायत दर्ज करने में देरी हुई और इसके लिए उसने क्षमा भी मांगी। इससे साबित होता है कि वह इस तथ्य से अवगत थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बाद में शिकायतकर्ता को निदेशक पद से हटाया जाना यौन उत्पीड़न की पूर्व घटनाओं का हिस्सा नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह एक स्वतंत्र निकाय की रिपोर्ट पर आधारित निर्णय था।
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