लखनऊ हाईकोर्ट से लोक गायिका नेहा सिंह राठौर को झटका, PM पर अभद्र टिप्पणी मामले में अग्रिम ज़मानत अर्जी खारिज
लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कथित अभद्र टिप्पणी मामले में लोक गायिका नेहा सिंह राठौर को शुक्रवार को लखनऊ हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है। न्यायमूर्ति बृज राज सिंह की एकल पीठ ने नेहा सिंह राठौर के खिलाफ लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में दर्ज मामले में उन्हें अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) मंजूर करने की अर्जी खारिज कर दी।
कोर्ट ने टिप्पणी के समय को माना अहम
अदालत ने अग्रिम ज़मानत अर्जी खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि नेहा सिंह राठौर के खिलाफ लगे आरोप पहली नजर में संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) दर्शाते हैं, जिनकी पुलिस द्वारा जाँच की जानी उचित है।
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ट्वीट का समय: अदालत ने कहा कि उनके ट्वीट्स का समय बेहद अहम है, क्योंकि वे पहलगाम आतंकी हमले के तुरंत बाद पोस्ट किए गए थे।
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फैसला: अदालत ने कहा कि यह अग्रिम जमानत का मामला नहीं बनता है, लिहाजा अग्रिम जमानत अर्जी खारिज की जाती है।
क्या है पूरा मामला?
नेहा सिंह राठौर पर विभिन्न धाराओं में मामला तब दर्ज हुआ जब उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (X) पर कुछ पोस्ट किए थे:
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पहलगाम हमला और राजनीति: नेहा ने पोस्ट किया था कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद मोदी बिहार आए ताकि पाकिस्तान को धमका सकें और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट बटोर सकें।
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बीजेपी पर आरोप: उन्होंने यह भी लिखा था कि आतंकियों को ढूँढने और अपनी गलती मानने के बजाय बीजेपी देश को युद्ध की तरफ धकेलना चाहती है।
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पुरानी FIR: पुलिस ने बताया कि इससे पहले 12 मई को उनके गाने 'चौकीदरवा कायर बा... बेटियां किसानन खातिर बनल जनरल डायर बा...' पर विवाद छिड़ा था, जिसमें उन पर पीएम नरेंद्र मोदी को जनरल डायर कहने का आरोप लगा था।
पिछली कानूनी लड़ाई
सरकारी वकील डॉ. वीके सिंह ने बताया कि नेहा सिंह राठौर पहले भी इसी एफआईआर को रद्द करने की गुजारिश के साथ हाईकोर्ट पहुँची थीं, जिसे 19 सितंबर को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने खारिज कर दिया था।
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सुप्रीम कोर्ट का रुख: सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि एफआईआर की जाँच में अदालत का हस्तक्षेप उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने से साफ इनकार कर दिया था, हालांकि उन्हें ट्रायल के दौरान आरोपों को चुनौती देने की स्वतंत्रता दी थी।
बचाव पक्ष के वकील पुरेंदू चक्रवर्ती ने तर्क दिया था कि ये टिप्पणियाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विषय हैं और इनमें देशद्रोह की धाराएं नहीं लगाई जा सकतीं।
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