फ़िल्म रिव्यू: धुरंधर – देशभक्ति, एक्शन और सधा हुआ विज़न: क्या यह है रणवीर सिंह के करियर की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म ?
निर्देशक/लेखक: आदित्य धर अवधि: 196 मिनट कलाकार: रणवीर सिंह, संजय दत्त, अक्षय खन्ना, आर. माधवन, अर्जुन रामपाल, सारा अर्जुन
🔥 कहानी: इतिहास की पृष्ठभूमि में घुली तीखी धार
'धुरंधर' की नींव 1999 के IC-814 हाईजैक और 2001 के भारतीय संसद हमले जैसी ऐतिहासिक घटनाओं पर टिकी है। आदित्य धर इन घटनाओं का इस्तेमाल सिर्फ पृष्ठभूमि के लिए नहीं करते, बल्कि खुफ़िया एजेंसियों पर उस दौर के दबाव, राजनीतिक गलियारों की घुटन भरी रणनीतियों और अंतरराष्ट्रीय आतंकी साज़िशों (जैसे 9/11) को वास्तविक फुटेज और ऑडियो-क्लिप्स के साथ जोड़कर एक भयंकर वास्तविकता पेश करते हैं। 196 मिनट की यह फ़िल्म दर्शक को सिर्फ रोमांच नहीं देती, बल्कि उसे देश की सुरक्षा चुनौतियों के प्रति जागरूकता की अवस्था में ले जाती है।
⭐ रणवीर सिंह का ट्रांसफॉर्मेशन: फ़िल्म की धड़कन
यह फ़िल्म यकीनन रणवीर सिंह के करियर की सबसे बेहतरीन और सधी हुई परफॉरमेंस में से एक है। उन्होंने हमज़ा का किरदार निभाया है, जो भावनात्मक घावों से भरा हुआ एक इंसान है, लेकिन एक ऐसा Operative है जो हर साँस में खतरा समेटे चलता है।
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पहला हाफ़: भावनात्मक गहराई और टूटे हुए मन को दर्शाता है।
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दूसरा हाफ़: रणवीर का रूप खतरनाक, सधा हुआ और बिजली की तरह दमदार दिखता है। उनका गुस्सा और तीखापन इतना स्वाभाविक है कि दर्शक उनसे दूर नहीं हो पाते।
🎯 कलाकारों का दमदार Ensemble (सहायक कलाकार)
हर कलाकार कहानी के तनाव को और मजबूत करता है:
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अक्षय खन्ना: विलेन के रूप में उनकी खामोशी ही डर पैदा करती है, वह चीखते नहीं, बल्कि सधे हुए अंदाज़ से काम करते हैं।
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संजय दत्त: उनकी मौजूदगी स्क्रीन पर कच्ची ताकत और बम के धमाके जैसी है, जिसका असर तुरंत होता है।
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आर. माधवन: कहानी का संतुलन साधते हैं, अनुभवी और गंभीर भूमिका में गहरे उतरते हैं।
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अर्जुन रामपाल: उनका शांत लेकिन खतरनाक एप्रोच कहानी में रहस्य और तनाव जोड़ता है।
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सारा अर्जुन: अपनी पहली ही फ़िल्म में उन्होंने बेहद परिपक्व और ज़रूरी भूमिका निभाई है।
🎬 तकनीकी और निर्देशन कौशल
आदित्य धर का विज़न बड़ा है, और फ़िल्म का हर तकनीकी पहलू इसे साबित करता है:
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एडिटिंग: 196 मिनट लंबी होने के बावजूद, एडिटिंग इतनी कसी हुई है कि समय का एहसास नहीं होता। हर सेकेंड मायने रखता है।
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बैकग्राउंड स्कोर: यह कहानी का इंजन है, जो धड़कनें तेज़ करता है और तनाव को नई ऊँचाई देता है।
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सिनेमेटोग्राफी: बड़े कैनवास को प्रभावशाली तरीक़े से पेश करती है। बड़े सेट्स और लोकेशंस पर तकनीकी कौशल दिखता है।
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हिंसा: हिंसा उतनी ही है जितनी कहानी की ज़रूरत है। निर्देशक दिखाते हैं कि असली हिंसा भावनाओं, चालों और विश्वासघात में निहित है।
निष्कर्ष और पार्ट टू का बिल्ड-अप
'धुरंधर' सिर्फ एक्शन फ़िल्म नहीं, बल्कि रिसर्च, भावनाएँ और तकनीकी कौशल का संगम है। फ़िल्म का अंत वहीं होता है जहाँ कहानी का दाँव सबसे बड़ा लगता है, जो दर्शक को खामोश छोड़ देता है और पार्ट टू के लिए एक परफ़ेक्ट बिल्ड-अप तैयार करता है।
अगर आप एक्शन, देशभक्ति, राजनीतिक थ्रिलर और बड़े पर्दे पर दमदार सिनेमाई अनुभव की तलाश में हैं, तो 'धुरंधर' आपका जवाब है।
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