'बढ़ियां तो हैं नीतीशे कुमार', 71 का फार्मूला बना एनडीए को 'किक स्टार्ट' दें गईं बिहार की महिलाएं
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे थोड़ी देर में प्रदेश की राजनीति की पूरी तस्वीर साफ करने वाले हैं। इससे पहले रुझानों में एनडीए को बड़ा बहुमत मिलता दिख रहा है। लोकसभा चुनाव की तरह इस बार बिहार में जनता महागठबंधन की बात से इत्तेफाक रखती नजर नहीं आ रही है।
इस चुनाव की घोषणा से ठीक पहले सितंबर में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत हुई और बिहार भर की महिलाओं को 10,000 रुपये की राशि हस्तांतरित की गई। इसके साथ ही बिहार देश का पहला प्रदेश है जहां पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को पहली बार आरक्षण मिल पाया और उनकी बेहतर भागीदारी सुनिश्चित की जा सकी। इसके साथ ही बिहार में 2016 के बाद से जारी शराबबंदी ने प्रदेश की महिला मतदाताओं के दिल में नीतीश सरकार के प्रति एक अलग स्थान बना दिया है। बिहार में महिलाएं जीवनयापन के लिए थोड़ा कष्ट सहने को तैयार हैं लेकिन शराब की वजह से घर की कलह और टूटते परिवार को देख पाना उनके लिए नामुमकिन है। ऐसे में नीतीश सरकार पर महिलाओं का भरोसा चुनाव दर चुनाव बढ़ता गया।
बिहार में महिलाओं के लिए नीतीश सरकार की सोच एक बार देखिए छात्रवृत्ति, आरक्षण, छात्राओं के लिए साइकिल और पोशाक योजना, स्वयं सहायता समूहों के जरिए रोजगार, उद्योग के लिए सहायता राशि और हाल ही में महिलाओं को सीधे बैंक खाते में 10 हजार रुपए की आर्थिक सहायता राशि। बिहार में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसदी और पंचायती राज में 50 आरक्षण का प्रावधान, जिसकी वजह से प्रदेश में पुरुषों की तुलना में महिलाएं पहले से अधिक आत्मनिर्भर और जागरूक हुई हैं। इस बार तो मतदान के दौरान बिहार में महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले राजनीतिक चेतना ज्यादा बेहतर नजर आई। इस बार महिलाओं ने किसी के कहने पर नहीं बल्कि अपने निर्णय से वोट किया।
एक और बात पर गौर कीजिए बिहार देश का पहला राज्य है जहां 31 लाख से अधिक जीविका दीदियां हैं जो लखपति हैं। इन जीविका दीदियों को लखपति बनाने की योजना नीतीश सरकार में 2023 में शुरू हुई थी। जब 2020 में उनकी कमाई इससे कहीं कम थी तब भी उन्होंने नीतीश कुमार का समर्थन किया। अब जब 31 लाख से अधिक लखपति दीदियां हो गई हैं तो जाहिर उन्होंने 2025 में अधिक मजबूती से नीतीश कुमार का समर्थन किया होगा। ऐसा में यह साफ हो गया कि महिला वोटरों के उत्साह ने सत्ता विरोधी लहर को काट कर नतीजों की दिशा नीतीश कुमार की तरफ मोड़ दी। इस चुनाव में बिहार से एक ऐसा आंकड़ा सामने आया जो हैरान करने वाला था। दरअसल, बिहार में एसआईआर के बाद पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं का पंजीकृत आधार छोटा दिखा लेकिन इसके बावजूद कुल मतदान में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से कहीं ज्यादा होगा चौंकाने के लिए काफी था। वैसे राजनीति के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक के साथ चुनाव को करीब से समझने और देखने वाले लोग हमेशा से मानते हैं कि जब इतने बड़े स्तर पर जब वोटिंग होती है, तो हमेशा व्यवस्था के खिलाफ होती है।
पांच या दस प्रतिशत के बीच वोटर चुनाव में मतदान करने के लिए ज्यादा आगे आते हैं तो कहा जाता है कि हो सकता है कि सत्ता पक्ष के साथ हों। लेकिन, जब भी 10 प्रतिशत और उसके ऊपर वोटर बूथ तक पहुंचते हैं। उसके बाद कयास लगाया जाता है कि वहां जनता जरूर बदलाव के मूड में है। ऐसे में एक बात बिहार चुनाव परिणाम से तो साफ पता चल रहा है कि बिहार चुनाव में लगभग 10 प्रतिशत का अंतर महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी को सुनिश्चित कर रहा है, जो संभवतः महिला-केंद्रित कल्याणकारी योजनाओं और नकद हस्तांतरण के वादों से प्रभावित है।
इसके साथ ही दीपावली और आस्था के महापर्व छठ के दौरान 12,000 से अधिक विशेष रेलगाड़ियां का परिचालन भी एक कारण हो सकता है कि क्योंकि बिहार तक बाहर रह रहे प्रदेश के मतदाताओं का पहुंचना सुलभ हो पाया। हालांकि नीतीश सरकार के प्रति महिलाओं का यह भरोसा चुनाव दर चुनाव बढ़ता जा रहा है। 2010 से लगातार चार बिहार विधानसभा चुनावों में महिलाएं पुरुषों से अधिक मतदान कर रही हैं। पहले जहां महिलाएं 50 प्रतिशत तक ही वोट डालती थीं, वहीं अब 70 प्रतिशत से ऊपर का आंकड़ा पार कर चुकी हैं।
इसे आप सिर्फ बिहार का सामाजिक परिवर्तन नहीं मानें, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी बड़ी उपलब्धि है। ऐसे में बिहार की राजनीति की समझ रखने वाले लोगों की मानें तो इस विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने सिर्फ मतदान का आंकड़ा नहीं बढ़ाया, बल्कि चुनाव के नतीजों की दिशा तय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह बदलाव बिहार की राजनीति में निर्णायक साबित हुई, क्योंकि महिला मतदाताओं ने हर दल के चुनावी समीकरण को प्रभावित किया।
