"जब समाज निर्मल होगा, तब जीवन सफल होगा"

संसार का प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसके साथ अपने समाज अथवा संसार के किसी भी कोने के लोग मानवता, सज्जनता का व्यवहार करे। राष्ट्र या विश्व के किसी भी कोने में घूमते हुए अथवा निवास करते हुए उसे धन, सम्मान अथवा जीवन छिन जाने का डर न रहे। एक ऐसा निर्मल समाज राष्ट्र तथा विश्व का निर्माण हो, वह शान्ति के साथ जी सके अपनी रोजी-रोटी कमा सके, परन्तु ऐसे समाज की कल्पना उसके लिए मात्र एक कल्पना की ही बात बनकर रह गई है। चारों ओर अशान्ति का साम्राज्य है। मानव, मानव को ही संदेह की दृष्टि से देखता है। हमारे शासकों ने भी विद्यालयों में नैतिक शिक्षा और बालकों के चरित्र निर्माण की ओर से उपेक्षा का भाव बना रखा है। सरकारों ने मोटी मुर्गियों, कठोर अंडे, लम्बी मोटी मछलियां, मोटे चरबीदार सुअर, लम्बे बालों वाली भेड़ें आदि के कार्यक्रम स्थल तो बनाये, परन्तु दानव बन रहे मानव को देवता बनाने का कोई वैज्ञानिक कार्यक्रम नहीं चलाया। न ही कोई ऐसी पाठशाला अथवा फार्म ही खोला। इसका एक ही उपाय है कि प्रत्येक व्यक्ति यह प्रतिज्ञा करे कि वह स्वयं अच्छा व्यवहार करेगा तथा अपने बच्चों को सुसंस्कारित करेगा। जिस व्यवहार की वह दूसरों से अपेक्षा करता है वैसा ही व्यवहार वह दूसरों से भी करेगा। ऐसा होने पर उसके आसपास का वातावरण ऐसा बनेगा, जिससे सारा समाज सुख-शान्ति और प्रसन्नता का अनुभव करेगा।