"जैसे हम होंगे, वैसा ही भविष्य रचेंगे – सुधार की शुरुआत खुद से करें"

हम कैसे भी हों, अच्छे हों या बुरे लेकिन हमारी इच्छा यही रहती है कि दूसरे हमारे साथ सद्व्यवहार ही करें। हम स्वयं पितृभक्त रहे हों या न रहे हों, किन्तु हम चाहते हैं कि हमारी सन्तान पितृभक्त हो। औरंगजेब की तरह शाहजहां के समान भूखा-प्यासा न मारे। संसार का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखता हो यही चाहेगा कि उसकी सन्तान श्रीराम और श्रवण जैसी पित्भक्त हो, युधिष्ठिर जैसी सत्यवादी हो, भीम और अर्जुन जैसी बलशाली हो। प्रत्येक पिता यही चाहेगा कि उसकी पुत्री को श्रीराम, श्रीकृष्ण महातपस्वी शिव के समान पति मिले। कोई पिता नहीं चाहेगा कि उसकी पुत्री अपने पति और ससुराल वालों के द्वारा उपेक्षित और प्रताडि़त हो। आप ऐसे अधिकारी नहीं चाहते जो बिना कारण आपके कार्य में विलम्ब करें, रिश्वत की इच्छा रखे। ऐसे डाक्टर नहीं चाहते जो बिना आवश्यकता के विभिन्न प्रकार के टेस्ट कराकर, कई-कई दिन प्राईवेट अस्पताल में रोककर हमारों के बिल बनाये। ऐसे इंजीनियर, ठेकेदार नहीं चाहते जो घटिया निर्माण सामग्री, कम सीमेंट-सरिया लगाकर पुलों और सड़कों को ऐसी बना दे जो बनने से पहले ही टूटने लगे। हम चाहे बेईमान हो पर हमारे नेता अधिकारी ऐसे न हों जो आवंटित धनराशि में से आधी कमीशन के रूप में खा जाये। विकास का धन बिना काम कराये ही डकार लें, परन्तु केवल ऐसा चाहने से कुछ नहीं होगा। हमें स्वयं ही ईमानदार और राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बनना होगा। याद रहे हम जैसे होंगे हमें भी वैसी ही परिस्थितियों का सामना करना ही होगा।