"भगवान उन्हीं पर कृपा करते हैं जो कर्मशील हैं, भाग्य के भरोसे बैठे आलसियों पर नहीं"
निराशा और असफलताओं में जब व्यक्ति स्वयं को धिक्कारने लगता है, तब जीवन की दिशा धुंधली पड़ जाती है। संसार से प्रेम करने के साथ-साथ स्वयं से भी प्रेम करना आवश्यक है। अपने शरीर, अपने कर्म, अपने आदर्श और अपने प्रभु में श्रद्धा रखिए। आत्मग्लानि से कुछ नहीं होगा — शांत मन से विचार करें कि त्रुटि कहाँ हुई, उसे सुधारें।
वरदान हमेशा जाग्रत और कर्मशील लोगों के लिए होता है, आलसियों के लिए नहीं। जो व्यक्ति पुरुषार्थी है, वही सच्चा कृष्ण भक्त है। साधारण व्यक्ति केवल कल्पनाओं में खोया रहता है — बातें बहुत करता है, लेकिन करता कुछ नहीं। ऐसे व्यक्तियों को भगवान पसंद नहीं करते।
जो केवल भाग्य के भरोसे सब कुछ पाना चाहते हैं, वे प्रभु की कृपा से वंचित ही रहते हैं।
जैसा कि भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन से कहा था —
“उत्तिष्ठ कौन्तेय” — हे अर्जुन, उठो और अपना कर्म करो।
