एनडीए में चिराग पासवान की डिमांड से खिंची तलवारें, सीट बंटवारे पर बढ़ा सियासी तनाव- Bihar News
Bihar News: बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और एनडीए (NDA) के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान तेज हो गई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने 40 सीटों की डिमांड रख दी है। यह मांग बीजेपी-जेडीयू के लिए पूरी करना न तो आसान है और न ही उन्हें […]
Bihar News: बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और एनडीए (NDA) के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान तेज हो गई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने 40 सीटों की डिमांड रख दी है। यह मांग बीजेपी-जेडीयू के लिए पूरी करना न तो आसान है और न ही उन्हें नाराज़ करना संभव। यही वजह है कि एनडीए के भीतर इस समय भारी असमंजस की स्थिति है।
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NDA का स्वरूप तय, लेकिन सीट बंटवारा अटका
वर्तमान में एनडीए का स्वरूप तय है इसमें शामिल हैं बीजेपी, जेडीयू, चिराग पासवान की एलजेपी (आर), जीतनराम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLM। लेकिन 243 सीटों वाली विधानसभा में अभी तक सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हो पाया है। सूत्रों के अनुसार, बीजेपी और जेडीयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं, जबकि छोटे दलों के बीच बाकी सीटें बांटी जाएंगी।
40 सीटों की मांग, लेकिन 20-25 पर सिमट सकती है LJP
चिराग पासवान की ओर से 40 सीटों की मांग रखी गई है, जिसे मानना लगभग नामुमकिन लग रहा है। माना जा रहा है कि एलजेपी (आर) को अधिकतम 20 से 25 सीटें ही मिल पाएंगी। वहीं, जीतन राम मांझी की पार्टी को 5–7 और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 2–4 सीटें दी जा सकती हैं। इस तरह सीटों की गणित बिगड़ती नज़र आ रही है।
2020 का चुनाव और चिराग का अलग रास्ता
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में जब चिराग पासवान को सीटें मन मुताबिक नहीं मिलीं, तो उन्होंने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा। उस दौरान एलजेपी ने 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से ज्यादातर जेडीयू के खिलाफ थे, लेकिन बीजेपी के खिलाफ नहीं। नतीजा यह हुआ कि जेडीयू की सीटें घटकर सिर्फ 43 रह गईं, जबकि बीजेपी 74 सीटों पर जीत दर्ज कर बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
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वोट बैंक और सियासी आधार
चिराग पासवान का वोट बैंक मुख्य रूप से दलित और अतिपिछड़ा वर्ग है। उनका दावा है कि एलजेपी का वोट शेयर बिहार में लगभग 10% है। 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सभी 5 सीटें जीतकर 100% सफलता हासिल की थी। इसी आधार पर चिराग 40 विधानसभा सीटों की मांग कर रहे हैं। लेकिन एनडीए का मानना है कि उनकी हैसियत के अनुसार 20 सीटों से ज्यादा नहीं दी जा सकती।
NDA के लिए जोखिम क्यों?
एनडीए के लिए दिक्कत यह है कि चिराग पासवान अगर अलग राह चुनते हैं तो वह वोट कटवा की भूमिका निभा सकते हैं, जैसा कि 2020 में हुआ था। अगर वे किसी नए गठबंधन से जुड़ते हैं या प्रशांत किशोर की पार्टी के साथ हाथ मिला लेते हैं तो यह बीजेपी-जेडीयू के लिए सीधा खतरा बन सकता है। यही वजह है कि चिराग पासवान एनडीए के लिए न उगलने लायक हैं और न निगलने लायक।
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