पराली ने फिर बढ़ाया पंजाब का दमघोंटू संकट: एक हफ्ते में दोगुने पहुंचे मामले, हवा में घुला जहर
Punjab News: पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं इस साल एक बार फिर तेजी से बढ़ने लगी हैं। किसानों द्वारा धान की कटाई के बाद खेतों में पराली को आग लगाने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, जिसके चलते राज्य में वायु प्रदूषण का स्तर चिंताजनक रूप ले चुका है। बीते एक सप्ताह में मामलों की संख्या दोगुनी हो गई है। हालांकि कुल आंकड़े पिछले साल के मुकाबले कम हैं, लेकिन हालात संकेत दे रहे हैं कि आने वाले दस दिनों में प्रदूषण और बढ़ सकता है।
एक हफ्ते में दोगुने हुए पराली आगजनी के केस
पिछले साल से 57 प्रतिशत कम
दिलचस्प रूप से, इस बार के आंकड़े पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 57 प्रतिशत कम हैं। साल 2024 में 28 अक्टूबर तक कुल 2,137 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए थे। इस वर्ष 31.72 लाख हेक्टेयर में धान की खेती हुई है, जिसमें लगभग 60 प्रतिशत की कटाई पूरी हो चुकी है। इसका मतलब है कि अभी 40 प्रतिशत क्षेत्र में कटाई बाकी है और इसी बचे हुए हिस्से में आग लगने की घटनाएं बढ़ने की संभावना जताई जा रही है।
प्रदूषण में और उछाल की आशंका
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जैसे-जैसे कटाई की रफ्तार बढ़ेगी, वैसे-वैसे पराली को जलाने की घटनाएं भी तेज होंगी। उनका अनुमान है कि अगले दस से पंद्रह दिनों में यह संख्या दो गुनी हो सकती है। इस स्थिति में राज्य की हवा और अधिक प्रदूषित होने की संभावना है, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है।
सांस लेने में मुश्किलें
पराली का धुआं अब हवा में घुल चुका है, जिससे राज्य के कई प्रमुख शहरों की वायु गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी में पहुंच गई है। दीवाली के बाद अमृतसर और जालंधर का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 500 पार दर्ज किया गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी मानी जाती है। लुधियाना में भी हवा की स्थिति चिंताजनक रही। इस समय अमृतसर का AQI 187, बठिंडा का 111, जालंधर का 132, लुधियाना का 139, मंडी गोबिंदगढ़ का 167 और पटियाला का 121 रिकॉर्ड किया गया है।
तीन साल में आई कमी
यदि पिछले तीन वर्षों के आंकड़े देखें तो पराली जलाने की घटनाओं में कमी जरूर आई है। वर्ष 2022 में कुल 49,922 केस दर्ज हुए थे, जबकि 2023 में यह आंकड़ा घटकर 36,663 रह गया। 2024 में केवल 10,909 केस दर्ज किए गए - जो 2022 की तुलना में 77 प्रतिशत कम थे। बावजूद इसके, मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि पराली समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है और हर साल यह संकट फिर से सिर उठाता है।
