परमात्मा की कृपा के लिए पहले स्वयं को बनाएं पात्र

वेद का ऋषि परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता है कि हे प्रभो, हे सुख के प्रदाता स्वप्रकाश स्वरूप, सर्वज्ञ परमात्मा आप हमको श्रेष्ठ मार्ग से सम्पूर्ण प्रज्ञानों को प्राप्त कराईये तथा जो हमको जो कुटिल पाणचग्णयुक्त मार्ग है उससे पृथक रखिए, उसकी छाया भी हम पर न पड़े। इसलिए हम नम्रतापूर्वक आपकी बहुत सी स्तुति करते हैं कि हमको पवित्र करे। हे रूद्र (दुष्टों को उनके पाप के दुख स्वरूप फल को देकर रूलाने वाले परमेश्वर) आप हमारे छोटे-बड़े जनगर्भ, माता-पिता और प्रिय बन्धु वर्ग तथा शरीरों का हनन करने के लिए कभी प्रेरित मत कीजिए। ऐसे मार्ग पर चलाइये जिस मार्ग पर चलकर हम आपके दंडनीय न हो। हे परम गुरू परमात्मन आप हमको असत मार्ग से पृथक कर सन्मार्ग को प्राप्त कराइये। अविद्या, अन्धकार को छुड़ाकर विद्यारूप सूर्य को प्राप्त कराइये और मृत्यु रोग से मुक्त कर मोक्ष के आनन्द रूप अमृत को प्राप्त कराइये हे प्रभो हमें ऐसी सन्मति का दान दे कि हम ऐसी प्रार्थना आपसे कभी न करे जो असम्भव हो, हमारी पुरूषार्थ क्षमता से बहुत अधिक हो, जिसके प्राप्त करने की पात्रता हममें न हो। हे मानव यह स्मरण रखो कि मनुष्य की प्रार्थना तभी सुनता है जब मनुष्य स्वयं सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करे। प्रार्थना करें कि मुझे दुर्गुण , दुर्व्यसनों से दूर करे और स्वयं दुर्गुणों को दूर करने का प्रयास न करे तो ऐसे व्यक्ति की प्रार्थना भगवान नहीं सुनेगा, उसकी कृपाओं के लिए स्वयं में पात्रता पैदा करे तभी उसकी कृपाओं के लिए आशा करे।