वेद में दान और परमार्थ का संदेश
वेद और धर्मशास्त्रों में धन कमाने और उसे खर्च करने के मार्ग पर विशेष प्रकाश डाला गया है। वेद का आदेश है कि मनुष्य अपने दोनों हाथों से मेहनत कर कमाए और अपने खुले मन से दीनहीन और जरूरतमंदों को दान करे। इसे प्रतीकात्मक रूप में कहा गया है कि हजारों हाथों से दान करो, जिसका आशय है कि धन का उपयोग केवल अपने परिवार या स्वयं तक सीमित न रखें।
धन का दीनहीन और गरीबों के भले के लिए उपयोग करना व्यक्ति को संतोष, मानसिक शांति और नैतिक बल देता है। वेदों में यह माना गया है कि परमार्थ में खर्च किया गया धन अगले जन्म में कई गुणा लौटता है। यह न केवल समाज की भलाई के लिए उपयोगी है, बल्कि व्यक्ति के अपने जीवन और भविष्य के लिए भी कल्याणकारी सिद्ध होता है।
धर्मशास्त्रों की यह शिक्षा बताती है कि जीवन का उद्देश्य केवल धन संचय नहीं है, बल्कि उसे सही दिशा में लगाना और समाज की भलाई में योगदान देना असली पुण्य और संतोष का मार्ग है।
