तालिबान राजदूत जईफ को पाकिस्तान ने नहीं, अफगानिस्तान ने ही सौंपा था अमेरिका को, पूर्व आईएसआई प्रमुख हक का दो दशक बाद दावा
इस्लामाबाद। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मध्य कुछ दिनों से जारी तनाव के बीच इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के पूर्व प्रमुख जनरल एहसान-उल-हक का ताजा दावा तालिबान शासन को नागवार गुजरने वाला हो सकता है। यह घटनाक्रम संयुक्त राज्य अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 (09/11) के हमलों के समय पाकिस्तान में पदस्थ रहे तालिबान राजदूत अब्दुस सलाम जईफ को लेकर किया गया है। जईफ खुलेआम कहते रहे हैं कि उन्हें पेशावर में अमेरिका को सौंपा गया। आईएसआई के पूर्व प्रमुख हक ने कहा कि यह सरासर झूठ है। जईफ को उनके अपने अफगानिस्तान के लोगों ने अमेरिका को सौंपा।
डान अखबार की रिपोर्ट में इस ताजा विवाद पर विस्तार से चर्चा की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद पाकिस्तान के अमेरिकी सेना को सौंपे गए कुख्यात दस्तावेज के 20 साल से भी ज्यादा समय बाद किया गया एहसान-उल-हक का दावा दोनों पड़ोसी देशों के रिश्तों को और खराब कर सकता है। हक ने 11 सितंबर, 2001 के हमलों के बाद ही आईएसआई की कमान संभाली थी। अब तक यही माना जाता रहा है कि जईफ को पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए अमेरिकियों को सौंपा था।
तालिबान के पूर्व दूत जईफ अपनी बहुचर्चित पुस्तक "माई लाइफ विद द तालिबान" में दावा कर चुके हैं कि उन्हें पेशावर में अमेरिकी हिरासत में दिया गया था। डान अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, जईफ के इस दावे को आज तक किसी भी पाकिस्तानी अधिकारी ने कभी सार्वजनिक रूप से चुनौती नहीं दी। हक ने हाल ही में एक सेमिनार में इस पर लंबी टिप्पणी की। उन्होंने बताया कि कैसे पिछली तालिबान सरकार की मान्यता समाप्त की गई और कैसे पाकिस्तानी अधिकारियों ने महीनों तक दूत जईफ को इस्लामाबाद छोड़ने के लिए मनाने की कोशिश की।
पूर्व जनरल हक ने कहा कि जईफ अड़े रहे। तब उन्हें उन्हें हेलीकॉप्टर से तोरखम सीमा पर ले जाया गया। सीमा पार करते ही अफगानिस्तान में घुसने पर उन्हें अफगान अधिकारियों ने गिरफ्तार कर अमेरिकी सेना को सौंप दिया। इसके बाद उन्हें ग्वांतानामो बे स्थानांतरित कर दिया गया। हक ने कहा कि ज़ईफ ने ग्वांतानामो बे के कुख्यात अमेरिकी हिरासत केंद्र में लगभग चार साल बंदी के रूप में बिताए और 2005 में रिहा हुए। रिपोर्ट के अनुसार, जईफ से हक की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया मांगी गई। ज़ईफ ने दो टूक शब्दों में पूर्व जनरल के बयान को खारिज कर दिया।
पूर्व आईएसआई प्रमुख हक ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि संबंध टूटने के बावजूद ज़ईफ पाकिस्तान में राजदूत के आधिकारिक आवास में ही रहते रहे। उनके यहां विदेशी मीडिया का डेरा लगा रहता था। उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2001 में अमेरिका के काबुल पर बमबारी शुरू करने के बाद तालिबान नेताओं ने अफगानिस्तान छोड़ना शुरू कर दिया। उनकी पाकिस्तान में निर्वासित सरकार बनाने की योजना थी। इस योजना का सूत्रधार जईफ ही था।
हक ने कहा, "मुल्ला ज़ईफ को पाकिस्तान छोड़ने के लिए कहने का फैसला लिया गया था। उस समय पाकिस्तान में 50 लाख अफगान रहते थे और हमने किसी भी अफगान को अमेरिका को नहीं सौंपा।"
