कानपुर देहात का ज़हर! 98 करोड़ की योजना फेल, क्रोमियम-पारे से दूषित पानी पी रहे हैं ग्रामीण
ग्रामीणों के सामने यह भयावह स्थिति है, जहां उन्हें हर दिन दूषित पानी पीना पड़ रहा है, जिससे बच्चे बीमार पड़ रहे हैं।
लापरवाही और टैनरी का ज़हर
इस त्रासदी की जड़ें सालों से टैनरी फैक्ट्रियों द्वारा ज़मीन में गाड़े गए औद्योगिक कचरे में हैं। यह ज़हर अब रिसकर ग्रामीणों के शरीर में खून तक पहुंच गया है।
सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण और डंप साइट की सफाई के लिए ₹98 करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी, लेकिन कंपनियों ने यह काम अधूरा छोड़ दिया। नतीजा यह हुआ कि ज़हरीला कचरा अब हवा, मिट्टी और पानी हर जगह फैल चुका है, जिससे पूरा क्षेत्र दूषित हो गया है।
NGT के आदेश भी फाइलों में दबे
मामले की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने भी इस डंप साइट को तुरंत साफ करने का आदेश दिया था। दुखद यह है कि सालों बाद भी यह आदेश सिर्फ फाइलों में दबा रह गया।
इस पूरे मामले की निगरानी के लिए प्रदूषण अधिकारी मनोज चौरासिया को टीम में शामिल किया गया था, लेकिन न तो कोई सैंपल रिपोर्ट सार्वजनिक हुई और न ही कोई ठोस कार्रवाई की गई। यानी अफसर दिखे, पर ज़हर को नहीं रोक पाए।
सरकारी दावों की खुली पोल
ग्रामीण आज भी बीमारी के साथ जीने को मजबूर हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि क्रोमियम और पारा एक बार मिट्टी में घुस जाएं, तो वे सालों तक पानी को ज़हरीला बनाए रखते हैं। यदि तुरंत कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाली पीढ़ियां भी इससे प्रभावित होंगी।
प्रदेश सरकार ने जहां 'हर घर जल' योजना से स्वच्छ पेयजल देने का दावा किया था, वहीं कानपुर देहात के ये गांव आज भी उसी जहरीले हैंडपंप पर निर्भर हैं। न नई पाइपलाइन बिछी, न सफाई पूरी हुई।
यह कानपुर देहात में सिर्फ एक पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि एक मानव त्रासदी है, जहां सरकारें बजट बनाती रहीं, अधिकारी बैठकों में व्यस्त रहे, और जनता हर रोज़ ज़हर पीने को विवश है।
