मां-बेटी को अवैध हिरासत में लेने वाला इंस्पेक्टर बर्खास्त; महिला ने की थी सुसाइड, अधिवक्ता से जुड़ा था कनेक्शन
कानपुर। कानपुर पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए निलंबित चल रहे इंस्पेक्टर आशीष द्विवेदी को पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया है। इंस्पेक्टर आशीष द्विवेदी को एक महिला और उसकी बेटी को अवैध तरीके से हिरासत में लेने और प्रताड़ित करने का दोषी पाया गया था, जिसके चलते प्रताड़ना से परेशान होकर महिला ने आत्महत्या कर ली थी। संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध एवं मुख्यालय) विनोद कुमार सिंह ने शनिवार देर रात यह कार्रवाई की।
आत्महत्या का मामला
संयुक्त पुलिस आयुक्त ने बताया कि आशीष द्विवेदी पर अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वहन न करने का आरोप था, जो विभागीय जांच में सही पाया गया। यह मामला अप्रैल 2022 का है, जब एनआरआई सिटी के एक कारोबारी के घर से जेवर चोरी हुए थे। उस समय नवाबगंज के थाना प्रभारी आशीष द्विवेदी और चौकी इंचार्ज रानू रमेश चंद्र ने कारोबारी के यहां काम करने वाली किशोरी और उसकी मां को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था। मां-बेटी को पूछताछ के बाद रात करीब दो बजे वन स्टॉप सेंटर ले जाया गया, जहां दूसरे दिन महिला ने बाथरूम में फंदा लगाकर जान दे दी। विभागीय जांच में दोनों पुलिसकर्मी दोषी पाए गए, जिसके बाद उन्हें बर्खास्तगी का नोटिस दिया गया था। आशीष द्विवेदी की ओर से संतोषजनक जवाब न मिलने पर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया, जबकि दूसरे एसआई पर कार्रवाई जारी है।
अखिलेश दुबे से कनेक्शन
बर्खास्तगी का दूसरा बड़ा कारण इंस्पेक्टर आशीष द्विवेदी का शहर के प्रभावशाली और विवादित अधिवक्ता अखिलेश दुबे से नजदीकी संबंध था।
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अगस्त 2025 में भाजपा नेता रवि सतीजा ने अखिलेश दुबे और उसके साथियों के खिलाफ 50 लाख रुपये की रंगदारी मांगने की एफआईआर दर्ज कराई थी।
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रवि सतीजा जब तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के पास पहुंचे, तो जन शिकायत प्रकोष्ठ में तैनात इंस्पेक्टर आशीष द्विवेदी उन्हें सीधे अखिलेश दुबे के दफ्तर ले गया, जहां दुबे ने भाजपा नेता को धमकी दी कि मामला एसआईटी तक नहीं पहुंचना चाहिए, अन्यथा उन्हें जीवन भर जेल में रहना पड़ेगा।
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जब एसआईटी ने जांच की तो अखिलेश दुबे और उसके सहयोगी दोषी पाए गए और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इस मामले में आशीष द्विवेदी को बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया, लेकिन वह तब से गैर हाजिर हो गया था।
'कानपुर का बादशाह' अखिलेश दुबे
अधिवक्ता अखिलेश दुबे को शहर में पुलिस अफसरों की जांचों की लिखा-पढ़ी करने के लिए जाना जाता था। उसने कभी कोर्ट में बहस नहीं की, बल्कि अपने दफ्तर में ही 'खुद की कोर्ट' लगाकर फैसले सुनाता था। अपने कारनामों को छिपाने के लिए उसने एक न्यूज चैनल भी शुरू किया था और पुलिस अफसरों तथा बिल्डरों के साथ एक मजबूत सिंडीकेट बना रखा था। यह सिंडीकेट इतना प्रभावशाली था कि केडीए, नगर निगम से लेकर डीएम ऑफिस तक, कोई भी उसके काम पर आपत्ति नहीं कर पाता था, जिससे बीते तीन दशकों से उसकी कानपुर में बादशाहत कायम थी। बड़े-बड़े केस की लिखा-पढ़ी दुबे के दफ्तर में होती थी। इसी का फायदा उठाकर वह लोगों के नाम निकालने और जोड़ने का काम करता था। इसी डर की वजह से बीते 3 दशक से उसकी कानपुर में बादशाहत कायम थी। कोई उससे मोर्चा लेने की स्थिति में नहीं था।
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