उत्तर प्रदेश में डाला छठ का समापन: लाखों व्रतियों ने उदीयमान सूर्य को दिया अर्घ्य, भक्ति और आस्था में डूबा प्रदेश
वाराणसी। लोक आस्था के महापर्व डाला छठ के चौथे और अंतिम दिन मंगलवार की भोर में पूरे उत्तर प्रदेश में श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। लाखों व्रती महिलाओं ने नदियों, तालाबों, सरोवरों और कुंडों के तटों पर पहुंचकर उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। इसी के साथ 36 घंटे तक चलने वाला निर्जला व्रत पूर्ण हुआ और पर्व का विधिवत समापन हो गया।
प्रातःकाल से ही वाराणसी, प्रयागराज, अयोध्या, गोरखपुर, मिर्जापुर, बलिया, आजमगढ़, देवरिया, लखनऊ, कानपुर, आगरा और झांसी सहित पूरे प्रदेश के घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। प्रदेश भर में भोर से ही व्रती महिलाएं अपने परिजनों संग गंगा,गोमती,सरयू,चंद्रप्रभा , वरूणा,नाद,रामगंगा,सोन सहित अन्य नदियों के घाटों पर पहुंच गईं। ईख, दीपक और दउरा में सजी पूजन सामग्री के साथ जब श्रद्धालु घाटों पर जुटे तो पूरा वातावरण भक्ति, संगीत और श्रद्धा से सराबोर हो उठा। सुबह होते-होते प्रदेश के सभी नदियों के घाटों पर पैर रखने तक की जगह नहीं बची। यहीं नजारा प्रदेश भर के सरोवरों, तालाबों और ग्रामीण अंचलों के जलाशयों पर भी दिखा। यहां व्रती महिलाओं ने विधि-विधान से छठ माता और सूर्य देव की पूजा-अर्चना की। और आस्था और विश्वास के साथ अरूणोदय की लालिमा के बीच दूध और जल का अर्घ्य दिया।
इसी तरह प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट, बलुआघाट, शिवकुटी, अरैल और फाफामऊ पर हजारों व्रती महिलाओं ने परिवार सहित सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया। वहीं, राजधानी लखनऊ में गोमती तट के लक्ष्मण मेला घाट, कुड़ियाघाट, झूलेलाल घाट और संझियाघाट पर श्रद्धालुओं ने छठ मैया की पूजा-अर्चना कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की।
वाराणसी में गंगाघाटों पर दिखा आस्था का सैलाब
धर्मनगरी वाराणसी में गंगा तट के दशाश्वमेध, अस्सी, पंचगंगा, सामने घाट, तुलसी, हनुमान, सिंधिया और भैसासुर घाट पर आस्था का अद्भुत नजारा देखने को मिला। बारिश और ठंड के बावजूद हजारों व्रती महिलाएं पूरी रात घाटों पर डटी रहीं और छठ माता की आराधना में लीन रहीं। ‘उग हो सूरज देव भइल अरघ के बेर’ और ‘पुरुबे से उगले नारायण’ जैसे पारंपरिक गीतों की गूंज से पूरा वातावरण भक्ति रस में डूब गया। जैसे ही पूरब दिशा में लालिमा फैली, श्रद्धालुओं के जयघोष और आतिशबाजी से घाटों का वातावरण गुंजायमान हो उठा। महिलाओं ने दूध और जल से अर्घ्य अर्पित कर सूर्यदेव और छठी मइया से परिवार की मंगलकामना की। इसके बाद प्रसाद वितरण और एक-दूसरे को पर्व की बधाई देने का दौर चला।
विदेशी पर्यटक भी हुए अभिभूत
वाराणसी के घाटों पर पहुंचे विदेशी पर्यटक भी व्रती महिलाओं की अटूट आस्था से मंत्रमुग्ध हो गए। कई पर्यटकों ने श्रद्धालुओं के साथ तस्वीरें खींचीं और इस अद्भुत धार्मिक अनुष्ठान को कैमरे में कैद किया।
छठ पूजा से लौटते समय महिलाओं ने मांग से नाक तक लगाया सिंदूर
छठ पूजा के बाद घाटों से घर लौटने के पहले महिलाओं ने मांग से नाक तक सिंदूर लगाया। इसके बाद साथ आई महिलाओं को भी लगाया। इसके बाद व्रती महिलाओं का पैर छूने की होड़ मच गई। सिर पर साड़ी का पल्लू लिए, मांग से नाक तक गहरा नारंगी सिंदूर लगा देख दूर से ही व्रती महिलाओं की पहचान हो रही थी। ज्योतिविद आचार्य रविन्द्र तिवारी ने बताया कि डाला छठ में महिलाएं यह सिंदूर इसलिए लगाती हैं क्योंकि यह उनके सौभाग्य, समर्पण और प्रार्थना का प्रतीक है। छठ पूजा में व्रती महिलाएं स्वयं को सूर्य की तेजस्विता और उनकी पत्नी देवी उषा की शुद्धता के साथ जोड़ती हैं। सिंदूर का गहरा नारंगी रंग सूर्य की किरणों का प्रतीक है। इसे ऊर्जा, तेज और जीवन का रंग भी मान सकते हैं। वाराणसी के हुकुलगंज की व्रती सीमा तिवारी,गुड़िया यादव,रचना उपाध्याय,वंदना चौबे,निषा यादव बताती है कि छठ पूजा में नाक से माथे तक लगाया गया नारंगी सिंदूर सौभाग्य का प्रतीक है। इससे पति की लंबी आयु और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आने के साथ संतान की प्राप्ति के साथ उसकी भी उम्र लंबी होती है।
सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद
पूरे प्रदेश में छठ पर्व के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए थे। एनडीआरएफ की टीमें, जल पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी लगातार घाटों की निगरानी में जुटे रहे। वरिष्ठ अधिकारी भोर से ही गंगा और अन्य नदियों के किनारे गश्त करते रहे, जिससे पर्व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ।
