मेरठ में व्यास महोत्सव के तीसरे दिन अंतरविद्यालयी वाद-विवाद और संस्कृत अवधान कार्यक्रम का आयोजन


प्रतियोगिता के बाद संस्कृत विभाग की पूर्व छात्रा डेजी ने संस्कृत भाषा में भागवत पुराण में उल्लिखित‘मुचुकुन्द कथा’,जिसमें मुचुकुन्द द्वारा कालयवन के भस्म होने का तथा श्री कृष्ण द्वारा मुचुकुन्द को वर प्रदान करने का वर्णन है, बहुत ही रोचक शैली में प्रस्तुत की।
तत्पश्चात सृष्टि (छात्रा संस्कृत विभाग) ने भारतीय आध्यात्मिकता, भक्तिवाद तथा प्रतीकवाद का अद्भुत संगम ‘महारास’ की मनोहरकथा प्रस्तुतकी । जिसका निहितार्थ यह है कि प्रभु श्रीकृष्ण एवं गोपियों के बीचहोने वाला ‘दिव्यरास’ केवल लौकिक प्रेम का चित्रण ही नहीं अपितु आत्मा और परमात्मा के शाश्वत मिलन का प्रतीक है।दोनों ही कथाओं की उपस्थित सभा ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस सत्र का सञ्चालन अंशिका (छात्रा संस्कृत विभाग) ने किया।
मध्यानोत्तर द्वितीय सत्र में संस्कृत की विलक्षण विधा ‘दशावधान’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ। दशावधान कार्यक्रम में 10 विद्वानों द्वारा दिए गए निषिद्धाक्षरी (डॉ. अभय सिंह द्वारा), समस्यापूरणम्(डॉ.राजकुमार मिश्र द्वारा), दत्तपदी(डॉ. नितिन आर्य द्वारा), उद्दिष्टाक्षरी(डॉ. प्रेमशंकर शर्मा द्वारा), संख्याबन्धः(डॉ. दीपक मिश्र द्वारा), आशुकाव्यम्(डॉ.हर्षित मिश्र द्वारा), काव्यवाचनम्(डॉ.संदीप कुमार द्वारा), अप्रस्तुतप्रसङ्गः (डॉ.ऋषिराज पाठक द्वारा), चित्र काव्य (डॉ. प्रज्ञा द्वारा) और घण्टावादनम् (श्रीअंकित वर्मा द्वारा)से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करते हुए बेंगलुरु से आए डॉ. उमा महेश्वर एन. ने अपनी अद्भुत मेधा शक्ति एवं विलक्षण प्रतिभा से समस्त सभा को चमत्कृत कर दिया।
सत्र के अध्यक्ष प्रो. हरे कृष्ण (प्रभारी कुलपति चौ.च.सि.वि.वि.) ने दशावधान कार्यक्रम से अत्यन्त प्रभावित होकर कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा है। संस्कृत जैसी वैज्ञानिकता अन्य दूसरी किसी भाषा में नहीं है। विश्व की बहुत ही कम भाषाओं में ‘द्विवचन’ के प्रयोग पाये जाते हैं। भारतीय नाम, अनुष्ठान, संस्कार सबकी भाषा संस्कृत ही है। सभी को संस्कृत मन्त्र और श्लोको के वाचन के साथ उनके अर्थ को भी जानना चाहिए। प्रसिद्ध और प्रचलित मन्त्रों को अर्थ के साथ जहाँ सरलता के साथ पढ़ा जा सके, ऐसे नए एप्लीकेशन बनाए जाने चाहिए।
मुख्या अतिथि प्रो. मधुकेश्वर भट्ट (प्रभारी कुलसचिव केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली) ने कहा कि अवधान कला बुद्धि की पराकाष्ठा है, दशावधान का यह मंच यज्ञवेदि के समान है तथा अवधानी इसके यजमान है एवं दस प्रश्नकर्ता इसके ऋत्विक हैं। कार्यक्रम के अधिष्ठाता पद्मश्री अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि यह कार्यक्रम भारत वर्ष का इतिहास बनेगा। 100 साल बाद भी लोग कहेंगे कि क्रान्ति धरा मेरठ की भूमि पर इस प्रकार के क्रांतिकारी कार्यक्रम का आयोजन हुआ। यह बुद्धि की पराकाष्ठा है कि प्रश्न कर्ता की बौद्धिक समस्या का समाधान अवधानी को तुरंत करना होता है विशेष बात यह है कि दस विद्वान अपनी समस्याओं की बौछार एक साथ अवधानी पर करते हैं और अवधानी को बड़े धैर्य के साथ उन सभी समस्याओं का समाधान करना होता है।
प्रो. रूचि गुप्ता (डी.जे.कॉलेज बडौत) ने शोध पत्र वाचन किया।
समारोह में प्रो.पूनम लखनपाल, डॉ प्रशान्त शर्मा, डॉ.नरेन्द्र कुमार, तुषार गोयल, डॉ.रक्षिता, साहिल तरीका, सृष्टि, गौतम, अंशिका, शिवानी, अदिति, इशिका, उज्जवल, विपिन, टीना, मोहित, विष्णु, शिवानी, पायल, सुमित, बबलू आदि का सहयोग रहा।
