आलू की सैन्टाना किस्म की खेती से कैसे पाएं बंपर पैदावार और कंपनियों से पाएं शानदार दाम

आज हम एक ऐसे आलू की किस्म के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो न सिर्फ किसानों की कमाई बढ़ाती है बल्कि चिप्स और फ्रेंच फ्राइज बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियों की भी पहली पसंद है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं आलू की सैन्टाना किस्म की, जिसे खास तौर पर प्रोसेसिंग के लिए उगाया जाता है।
आलू की सैन्टाना किस्म क्यों है खास?
त्ता वाली वैरायटी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इससे बनने वाले फ्रेंच फ्राइज और चिप्स का स्वाद और क्वालिटी बेहतरीन होती है। इसकी संरचना और हल्का रंग इसे प्रोसेसिंग के लिए सबसे उपयुक्त बनाते हैं। यही वजह है कि मार्केट में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है और किसान इसे बड़े पैमाने पर उगाते हैं।
खेती का सही समय और मिट्टी
अगर आप इस किस्म की खेती करना चाहते हैं तो सितंबर से नवंबर का समय सबसे बेहतर माना जाता है। मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई 1 नवंबर से 15 दिसंबर तक करना लाभकारी होता है। खेती के लिए हल्की, बलुई-दोमट या दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इसमें पानी की उचित मात्रा धारण करने की क्षमता होती है।
खेती शुरू करने से पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए और मिट्टी को भुरभुरा बनाकर उसमें अच्छी मात्रा में कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिए। बीजों को बुवाई से पहले उपचारित करना ज़रूरी है और उन्हें छाया में हवादार जगह पर कुछ समय के लिए फैलाकर रखना चाहिए।
बुवाई और उत्पादन
बुवाई के समय बीजों को लगभग 5 से 7 सेंटीमीटर गहराई में बोना चाहिए। इसके बाद आलू की सैन्टाना किस्म की फसल लगभग 70 से 90 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।
इसकी खासियत यह है कि प्रति हेक्टेयर खेती से किसानों को लगभग 50 मीट्रिक टन से अधिक पैदावार मिल सकती है। इतना ही नहीं, इसकी भंडारण क्षमता भी बेहतरीन होती है, जिससे आलू लंबे समय तक खराब नहीं होते।
किसानों के लिए मुनाफे का सौदा
दोस्तों, आलू की सैन्टाना किस्म किसानों के लिए सोने पर सुहागा है। एक तरफ इसकी मांग कंपनियों में ज्यादा है, दूसरी तरफ मार्केट में इसे अच्छे दाम भी मिलते हैं। यही कारण है कि प्रोसेसिंग इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियां इस वैरायटी को सबसे ज्यादा पसंद करती हैं।