सितंबर में मटर की अर्ली वैरायटी बोकर किसान बन सकते हैं मालामाल नवंबर में मिलेगा सबसे ऊंचा दाम

अगर आप इस बार खेती से जल्दी और अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आपके लिए सितंबर का महीना बहुत खास है। इस समय मटर की अर्ली वैरायटी की बुवाई करना किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। जल्दी बोई गई मटर की फसल समय से पहले तैयार होकर बाजार में सबसे पहले पहुंचती है और जब आपकी फसल मंडी में सबसे पहले बिकेगी तो उसका दाम भी सबसे ज्यादा मिलेगा।
दोस्तों मटर की कई किस्में बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन सितंबर में बुवाई के लिए पुसा अर्ली, अजाद पी-1, अर्का प्रगति, अर्ली बदशाह और जवाहर मटर-1 जैसी किस्में सबसे बेहतर रहती हैं। ये किस्में रोगों के प्रति सहनशील होती हैं, जल्दी पक जाती हैं और इनकी पैदावार भी अच्छी होती है। इन मटर के दाने मोटे और स्वाद में मीठे होते हैं जिसकी वजह से बाजार में इनकी मांग सबसे ज्यादा रहती है।
खेती की तैयारी में किसान भाई अगर बीजोपचार पर ध्यान दें तो फसल में रोगों का खतरा बहुत हद तक कम हो जाता है। बुवाई से पहले बीजों को थायरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करना चाहिए। खेत की अच्छी जुताई करके उसमें गोबर की सड़ी खाद मिलाना बहुत जरूरी है। बुवाई के समय कतारों की दूरी बीस से पच्चीस सेंटीमीटर रखनी चाहिए ताकि पौधों को पर्याप्त जगह मिल सके और वे स्वस्थ रूप से बढ़ें।
पहली सिंचाई बुवाई के लगभग पंद्रह दिन बाद करनी चाहिए और इसके बाद जरूरत के हिसाब से पानी देते रहना चाहिए। सबसे ज्यादा ध्यान उस समय रखना है जब पौधों में फूल आ रहे हों और फलियां बन रही हों क्योंकि यही सबसे संवेदनशील समय होता है। अगर इस दौरान सिंचाई सही तरीके से हो गई तो फसल बहुत अच्छी पैदावार देती है।
मटर की फसल में सफेद मोजैक वायरस, उखटा और पत्ती लपेटक जैसे रोग लगने की संभावना रहती है। इनसे बचाव के लिए किसान समय-समय पर जैविक या रासायनिक स्प्रे कर सकते हैं। अगर खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो प्रति बीघा छह से दस क्विंटल तक मटर का उत्पादन लिया जा सकता है जिससे किसानों को अच्छा खासा लाभ मिलेगा।
मटर की अर्ली वैरायटी की बुवाई किसानों को प्रतिस्पर्धा से आगे ले जाती है क्योंकि जल्दी तैयार हुई फसल बाजार में ऊंचा दाम दिलाती है। इसलिए सितंबर का यह मौका बिल्कुल न चूकें।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी केवल जागरूकता और शैक्षिक उद्देश्य से है। खेती शुरू करने से पहले अपने स्थानीय कृषि विशेषज्ञ या कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह अवश्य लें।