सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर के दौरान बीएलओ की मौत पर चिंता जताई, काम का बोझ कम करने के दिए निर्देश
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के काम में लगे बीएलओ को राहत दी है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने एसआईआर वाले राज्यों को निर्देश दिया है कि बीएलओ पर दबाव कम करने के लिए अतिरिक्त स्टाफ की तैनाती करें।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर कोई बीएलओ व्यक्तिगत कारणों से एसआईआर का कार्य करने में सक्षम नहीं है, तो उचित कारणों की स्थिति में उन्हें राहत देने पर विचार किया जाए। किसी दूसरे को काम पर लगाया जाए। कोर्ट ने साफ किया कि राहत न मिलने की स्थिति में संबंधित बीएलओ कोर्ट का रुख भी कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एसआईआर के दौरान अगर किसी बीएलओ की मौत होती है, तो मुआवजे के लिए बाद में अर्जी दाखिल की जा सकती है।
कोर्ट में तमिल अभिनेता विजय की पार्टी टीवीके की ओर से दाखिल याचिका पर गुरुवार काे सुनवाई हुई। याचिका में मांग की गई है कि एसआईआर के दौरान अगर बीएलओ की ओर से कोई गलती होती है, तो उसके लिए निर्वाचन आयोग को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 32 के तहत निरोधात्मक कार्रवाई करने से रोका जाए।
टीवीके की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश में बीएलओ पर कई एफआईआर दर्ज कराई है। उन बीएलओ में अधिकांश आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और शिक्षक हैं। उन्होंने कहा कि बीएलओ सुबह अपने मूल ड्यूटी पर जाते हैं, उसके बाद विशेष गहन पुनरीक्षण के काम में लग जाते हैं। यूपी में एक बीएलओ को अपनी शादी में जाना था और उसने छुट्टी मांगी थी। उसे निलंबित कर दिया गया, जिसके बाद उसने फांसी लगा ली। तब उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निर्वाचन आयोग खुद काम नहीं कर सकता और इसके लिए राज्य सरकार की मदद लेनी होगी। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि बीएलओ पर एसआईआर के काम का डाला जा रहा दबाव एक हकीकत है। आखिरकार यूपी जैसे बड़े राज्य में केवल एक महीने ही क्यों दिए जा रहे हैं, जबकि विधानसभा का चुनाव 2027 में होना है।
