त्योहारी मांग और जीएसटी सुधारों से कंज्यूमर सेक्टर को मिलेगी रफ्तार, लेकिन ग्रामीण मांग अब भी कमजोर

Consumer Sector Growth: सिस्टेमैटिक्स रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2026 की दूसरी छमाही में उपभोक्ता सेक्टर में मजबूती देखने को मिलेगी। त्योहारों की खरीदारी और जीएसटी सुधार इसके बड़े कारण माने जा रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि ग्रामीण मांग अभी भी कमजोर बनी हुई है, जहां रिकवरी मुख्य रूप से महंगाई में कमी की वजह से नजर आ रही है, न कि आय वृद्धि से।
पहली तिमाही के नतीजे रहे सुस्त
उपभोक्ता कंपनियों के प्रदर्शन में दिखा सुधार
पहली तिमाही में उपभोक्ता वस्तुओं की कंपनियों ने राजस्व में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, जबकि बिक्री 3.5 प्रतिशत बढ़ी। दोनों आंकड़े बताते हैं कि हालात धीरे-धीरे बेहतर हो रहे हैं और आगे त्योहारों के मौसम से और तेजी मिल सकती है।
शहरी बनाम ग्रामीण मांग की स्थिति
जहां शहरी बाजारों में मांग में सुधार दिख रहा है, वहीं ग्रामीण बाजार अब भी स्थिर हैं। प्रतिकूल मौसम का असर जूस, कार्बोनेटेड पेय, आइसक्रीम, डेयरी, स्किन केयर और पेंट जैसी श्रेणियों पर पड़ा है। इन उत्पादों की मांग मौसमी उतार-चढ़ाव से प्रभावित रही।
वॉल्यूम मांग में सुधार की संभावना
रिपोर्ट का कहना है कि मुद्रास्फीति में कमी और वितरण नेटवर्क के विस्तार के चलते वित्त वर्ष 2026 की दूसरी छमाही में वॉल्यूम मांग बढ़ने की पूरी उम्मीद है। खासकर खाद्य और पेय पदार्थों को संभावित जीएसटी कटौती का लाभ मिल सकता है, जिससे कंपनियों की बिक्री और मजबूत हो सकती है।
ग्रामीण मांग पर अभी भी दबाव
हालांकि, ग्रामीण मांग की स्थिति नाजुक है। रिपोर्ट के अनुसार, गांवों में खपत आय वृद्धि पर आधारित नहीं है बल्कि महंगाई घटने से थोड़ी राहत मिली है। ग्रामीण परिवारों की खपत सरकारी ट्रांसफर पर निर्भर है, जबकि बढ़ते खाद्य खर्च और घटती बचत स्थिति को और जटिल बना रहे हैं। अनौपचारिक उधारी में भी इजाफा हुआ है। मजबूत मानसून ने उत्पादन तो बढ़ाया, लेकिन कम फसल मूल्य ने किसानों की आय को सीमित कर दिया।
शहरों में विवेकाधीन खर्च में सुधार
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि शहरी उपभोक्ता विश्वास अब भी कमजोर है, लेकिन गैर-जरूरी खर्च में धीरे-धीरे बढ़ोतरी दिख रही है। इससे संकेत मिलता है कि वर्ष की दूसरी छमाही में कंज्यूमर सेक्टर को समग्र रूप से बल मिलेगा। वहीं, ग्रामीण बाजारों की कमजोर स्थिति इस सुधार को पूरी तरह से संतुलित नहीं कर पा रही है।