भारतीय दर्शन: मानवता, आनंद और करुणा का महान संदेश
भारतीय दर्शन का आधार हमेशा से मानव कल्याण और नैतिक आचरण रहा है। हमारे प्राचीन सूत्रों में एक ऐसी अनमोल शिक्षा मिलती है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है—जो बात या व्यवहार आप अपने लिए पसंद नहीं करते, वैसा आचरण दूसरों के प्रति भी न करें। यह वाक्य केवल नैतिक उपदेश नहीं है, बल्कि एक ऐसा सार्वभौमिक सिद्धांत है, जो प्रत्येक समाज और प्रत्येक धर्म के मूल में रखा जा सकता है।
भारतीय चिंतन का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत मुक्ति नहीं, बल्कि सामूहिक uplift रहा है। जब हम यह संकल्प लेते हैं कि हमारे कारण किसी भी जीव को किसी प्रकार की पीड़ा न पहुंचे, तब समाज स्वतः ही शांतिमय और सुरक्षित बन जाता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह भावना उतनी ही आवश्यक है—घर में, समाज में, राजनीति में और व्यवस्था में भी।
यह संदेश बताता है कि मानवता की रक्षा केवल कानूनों से नहीं होती, बल्कि मनुष्यों के भीतर जागृत सद्भावना और करुणा से होती है। यदि हम अपने भीतर के आनंद को दूसरों तक पहुँचाना सीख जाएँ, यदि हम दूसरों के लिए वही व्यवहार चुनें जो हम अपने लिए चाहते हैं, तो वास्तव में एक ऐसा समाज बन सकता है जहाँ शांति और सौहार्द केवल शब्द नहीं, बल्कि जीवन का सत्य बन जाए।
भारतीय दर्शन की यही सबसे सुंदर और अनोखी विशेषता है—यह हमेशा मानवता की ओर, करुणा की ओर और सार्वभौमिक कल्याण की ओर प्रेरित करता है।
