चित्त—एक सरोवर की तरह

चित्त एक सरोवर की भांति है, जिसमें हर्ष और शोक की तरंगें लगातार उठती और गिरती रहती हैं। यह जीवन का स्वाभाविक क्रम है। इसलिए दुख की घड़ी में टूटिए नहीं और सुख के समय अहंकार में मत डूबिए। दोनों ही परिस्थितियों में संयम और संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
परमात्मा पर अटूट आस्था रखिए। यह विश्वास केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक शक्ति है। वही शक्ति जो आपको कठिन से कठिन परिस्थिति में भी मुस्कराने की हिम्मत देती है। जब दुख गहराने लगे, तब मुस्कराइए—क्योंकि तब मुस्कराहट की जरूरत सबसे अधिक होती है।
धैर्य, साहस और संतुलन—ये तीन स्तंभ जीवन को स्थिर रखते हैं। अपने आंसू स्वयं पोंछना सीखिए। स्वयं को स्वयं ही समझाइए, क्योंकि कोई दूसरा व्यक्ति आपको आपसे बेहतर नहीं जान सकता।
इस संसार में भीड़ भले ही बहुत है, लेकिन जीवन का मार्ग हर किसी को अकेले ही तय करना होता है। अपने कर्मों का फल भी हर व्यक्ति को स्वयं ही भोगना पड़ता है।
सुख में सभी साथ होंगे, परंतु दुख में अधिकतर लोग दूर चले जाएंगे। इसलिए दुख की घड़ी में अपने भीतर की शक्ति को पहचानिए और आत्मबल को अपना सच्चा साथी बनाइए।