आरबीआई बनाम एसबीआई: देश के दो आर्थिक दिग्गजों की अभूतपूर्व भिड़ंत, रिसर्च रिपोर्ट में नकल का गंभीर आरोप

बैंकिंग जगत में मचा हलचल

गुलाटी ने लिखा कि, "वित्तीय पेशेवरों के लिए मौलिकता सर्वोपरि है, लेकिन रिपोर्ट की इस नकली प्रस्तुति ने शोध की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।" उनका कहना है कि बिना अनुमति इस तरह के डेटा का प्रयोग बौद्धिक मानकों और नैतिकता दोनों के खिलाफ है।
एसबीआई के अर्थशास्त्री ने खारिज किए आरोप
आरबीआई के गुलाटी के इस पोस्ट के बाद एसबीआई के वरिष्ठ अर्थशास्त्री तापस परीदा ने भी लिंक्डइन पर जवाब देते हुए कहा कि इन आरोपों का कोई औचित्य नहीं है। परीदा का दावा है कि Ecowrap रिपोर्ट में इस्तेमाल किया गया डेटा पहले से सार्वजनिक डोमेन में मौजूद है और आरबीआई की रिपोर्ट से “प्रत्यक्ष नकल” करने का आरोप तथ्यहीन है।
इसके बावजूद विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। आर्थिक हलकों में यह मामला अब संस्थागत पारदर्शिता और बौद्धिक ईमानदारी की मिसाल बन गया है।
मौद्रिक नीति रिपोर्ट का महत्व
आरबीआई हर छह महीने में मौद्रिक नीति रिपोर्ट (MPR) जारी करता है, जिसमें महंगाई के कारण, संभावित आर्थिक रुझान और अगले 6 से 18 महीनों के लिए मुद्रास्फीति की भविष्यवाणियाँ शामिल होती हैं। यह रिपोर्ट नीति निर्धारण, निवेश योजना और बाजार स्थिरता के लिए बेहद अहम मानी जाती है। सार्थक गुलाटी का मानना है कि इस तरह रिसर्च डेटा की नकल न केवल पाठकों को गुमराह करेगी, बल्कि आर्थिक विश्लेषण के मानकों को भी गहराई से नुकसान पहुंचाएगी।
फिलहाल आरबीआई और एसबीआई - दोनों संस्थानों ने इस विवाद पर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण जारी नहीं किया है, लेकिन लिंक्डइन पर हुई यह टकराहट अब पूरे भारत के वित्तीय वर्ग में बहस का मुद्दा बन चुकी है।
