बरबटी की खेती से किसानों की बल्ले बल्ले: भरपूर पैदावार और लाखों की कमाई का सुनहरा मौका

खेती किसानी करने वाले किसान भाइयों के लिए सबसे बड़ी खुशी तब होती है जब उनकी मेहनत का फल उन्हें अच्छी पैदावार और सही दाम दिलाकर लौटाता है। ऐसी ही एक फसल है बरबटी जिसे लंबी फली वाली सेम, लोबिया या बोरा फली के नाम से भी जाना जाता है। यह फलीदार सब्जी किसानों के लिए बहुत लाभकारी मानी जाती है क्योंकि इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है। सबसे खासबात यह है कि बरबटी की खेती कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा देने वाली होती है।
बरबटी की खेती क्यों है खास
बरबटी की काशी कंचन किस्म
दोस्तों अगर आप बरबटी की ऐसी किस्म लगाना चाहते हैं जो जल्दी तैयार हो और शानदार उपज दे तो काशी कंचन किस्म आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प है। यह किस्म अक्टूबर महीने में बुवाई के लिए आदर्श होती है। इसकी खासियत यह है कि यह रोग प्रतिरोधक होती है और इसकी फलियाँ लंबी, मुलायम और हरे रंग की चमकदार होती हैं। यही वजह है कि मार्केट में यह जल्दी बिक जाती है। बुवाई के लगभग 55 से 65 दिन बाद इसकी पहली तुड़ाई की जा सकती है। एक एकड़ में काशी कंचन की खेती करने से करीब 60 से 71 क्विंटल तक की उपज प्राप्त की जा सकती है जो किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है।
बरबटी की काशी श्यामला किस्म
बरबटी की दूसरी लोकप्रिय किस्म है काशी श्यामला। यह किस्म व्यावसायिक खेती और बगीचों दोनों के लिए उपयुक्त है। इसकी डिमांड बाजार में बहुत ज्यादा है क्योंकि लोग इसे खाना बेहद पसंद करते हैं। इसकी खेती ऐसी जमीन में करनी चाहिए जहां पानी का निकास अच्छा हो। इसके पौधे लगभग 70 से 75 सेंटीमीटर लंबे होते हैं और झाड़ीनुमा आकार में बढ़ते हैं। इसलिए खेती करते समय बेल को सहारा देने के लिए मचान या बांस का जाल लगाना जरूरी है। बुवाई के 55 दिन बाद यह किस्म भी तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी खेती करने वाले किसान लाखों रुपए की कमाई कर सकते हैं।
किसानों के लिए सुनहरा अवसर
दोस्तों आज के समय में बरबटी की खेती किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है। यह कम समय में तैयार होने वाली फसल है जिसकी उपज और बाजार भाव दोनों ही बेहतर होते हैं। खासकर काशी कंचन और काशी श्यामला किस्में किसानों को न केवल अधिक पैदावार देती हैं बल्कि उनकी जेब भी भर देती हैं।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी शोध और कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर आधारित है। किसान भाई खेती करने से पहले अपने नजदीकी कृषि वैज्ञानिक या कृषि केंद्र से सलाह अवश्य लें।