जुहू तट से उठे छठ के 'सूर्य': 34 साल पहले 60 परिवारों की शुरुआत, आज लाखों की आस्था
Chhat Puja Mumbai: मुंबई में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा आज जिस विराट रूप में मनाया जाता है, उसकी शुरुआत 34 साल पहले जुहू तट पर महज़ 60 परिवारों के एक छोटे से सामूहिक आयोजन से हुई थी। जो उत्सव 1992 में शुरू हुआ, वह आज सामाजिक और धार्मिक दायरे से आगे बढ़कर एक वृहद राजनीतिक और सांस्कृतिक शक्ति का प्रतीक बन चुका है। जुहू के समुद्री तट पर होने वाले इस आयोजन में अब लाखों की भीड़ जुटती है, जो न केवल बिहार-झारखंड के लोगों की गहरी आस्था को दर्शाती है, बल्कि मुंबई और ठाणे क्षेत्र में उनके बढ़ते राजनीतिक रसूख का भी प्रमाण है। यह सामूहिक शक्ति ही है कि आज छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि बिहारी अस्मिता का एक मुखर उद्घोष बन गई है।
राजनीतिक बीज और वोटबैंक की आहट
पुलिसिया परेशानी और मिश्र का दृढ़ संकल्प
मोहन मिश्र के लिए यह शुरुआत आसान नहीं थी। उन्होंने बताया कि जुहू तट पर पूजा का आयोजन करना तब बहुत मुश्किल था। शुरुआती दौर में उन्हें स्थानीय पर्यटकों को परेशान करने वाले घोड़े और बग्घी वालों के विरोध का सामना करना पड़ा, वहीं पुलिस ने भी आकर उनके बांस और तंबू उखाड़ फेंके थे। इन तमाम रुकावटों के बावजूद, मोहन मिश्र ने हार नहीं मानी। उन्होंने वर्ष दर वर्ष इस आयोजन को विस्तार दिया और व्रतियों की सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित किया। शुद्ध पेयजल, वड़ा पाव, शौचालय और महिलाओं के लिए वस्त्र बदलने के लिए केबिन तक का इंतजाम किया गया, जिसने धीरे-धीरे इस आयोजन को सुव्यवस्थित रूप दिया। 1997 में, इस्कॉन मंदिर की ओर से श्रद्धालुओं के लिए खिचड़ी की व्यवस्था भी शुरू हुई, जो सामुदायिक सहयोग की मिसाल बनी।
सेलेब्रिटी और नेताओं का बढ़ता जुड़ाव
जैसे-जैसे व्रतियों की संख्या बढ़ती गई, इस उत्सव का प्रभाव भी बढ़ने लगा। वर्ष 1997 से, तब शिवसेना के नेता रहे संजय निरुपम ने 'बिहार फ्रंट' बनाकर जुहू तट पर ही एक और समानांतर छठ पूजा का आयोजन शुरू कर दिया। इस विस्तार के साथ ही, इस आयोजन में कई जाने-माने चेहरे भी जुड़ने लगे। बॉलीवुड के मशहूर गायक उदित नारायण और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा जैसे सेलेब्रिटी के साथ-साथ बिहार के प्रमुख नेता सुशील मोदी और नंदकिशोर यादव जैसे राजनेताओं का आगमन भी होने लगा, जिसने इस आयोजन को एक राष्ट्रीय पहचान दी।
क़ानूनी चुनौती और सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
2004 में, कुछ विवादों के कारण बॉम्बे उच्चन्यायालय ने इन आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह एक बड़ी चुनौती थी, जिसे भाजपा के तत्कालीन दिग्गज नेता अरुण जेटली ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। जेटली ने न केवल यह प्रतिबंध हटवाया, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय ने वहीं से एक ऐतिहासिक निर्देश दिया। न्यायालय ने मुंबई में इस छठ उत्सव की जिम्मेदारी सीधे राज्य सरकार को सौंप दी। उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर.आर. पाटिल थे।
राजनीति का महाकुंभ और मुख्यमंत्री की उपस्थिति
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद, 2005 में तत्कालीन गृहमंत्री आर.आर. पाटिल ने जुहू तट पर व्यवस्था संभालने के लिए न केवल 1000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया, बल्कि वह स्वयं और राकांपा के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल भी इस आयोजन में शामिल होने पहुंचे। इसके बाद से तो सामूहिक छठ पूजा में राजनेताओं के आने का सिलसिला ही चल पड़ा। 2014 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद से, देवेंद्र फडणवीस हर साल छठ मैया का आशीर्वाद लेने जुहू की पूजा में पहुंचते हैं। यह उपस्थिति इस बात का प्रतीक है कि छठ पूजा अब महाराष्ट्र की मुख्यधारा की राजनीति का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है।
83 स्थानों पर भव्य आयोजन और महासंघ का गठन
मोहन मिश्र के अनुसार, अब मुंबई और ठाणे क्षेत्र में 83 स्थानों पर सामूहिक छठ पूजा का आयोजन होता है, और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए इस संख्या को और बढ़ाने की योजना है। इन सभी आयोजनों को संगठित रूप प्रदान करने के लिए 2004 में ही 'छठ उत्सव महासंघ' की स्थापना की गई, जिसमें 14 आयोजन समितियां शामिल हैं। इस संगठन की शक्ति का ही परिणाम है कि इस वर्ष मुंबई के प्रभारी मंत्री मंगलप्रभात लोढ़ा स्वयं घूम-घूमकर तैयारियों का निरीक्षण कर रहे हैं। उन्होंने प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि छठ पूजा आयोजनों को महाराष्ट्र में प्रमुखता से मनाए जानेवाले गणेशोत्सव जैसी ही सुविधाएं और अनुमतियां प्रदान की जाएं, जो मुंबई में इस पर्व के बढ़ते महत्व को रेखांकित करता है।
