उत्तराखंड में गूंजे छठी मईया के गीत: विकासनगर में श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब, हर घर में गूंज रही सूर्य उपासना की तैयारी
Chhath Puja Celebration: उत्तराखंड के विकासनगर और आसपास के इलाकों में छठ महापर्व का उल्लास देखने को मिल रहा है। श्रद्धालुओं ने नहाय खाय की तैयारी शुरू कर दी है और बाजारों में पूजा सामग्री की खरीदारी जोरों पर है। फल, गन्ना, दीपक, सूप और मिट्टी के बर्तनों की दुकानों पर जबरदस्त भीड़ उमड़ रही है। श्रद्धालु घरों में प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे तैयार कर रहे हैं। यह पर्व शुद्धता और सूर्य उपासना का प्रतीक है, जिसमें हर कोई पूरे समर्पण और श्रद्धा से भाग ले रहा है।
नहाय खाय से होगी छठ पर्व की शुरुआत
व्रतियों ने की पवित्र स्नान की तैयारी
शनिवार को नहाय खाय के साथ व्रत की शुरुआत होगी। श्रद्धालु इस दिन कद्दू-दाल, चावल, चने की दाल और लौकी का सात्विक भोजन करेंगे। इसके बाद व्रत की शुरुआत कर सूर्यदेव की आराधना करेंगे। पछवादून के विकासनगर, डाकपत्थर और सेलाकुई इलाकों में छठ पर्व की विशेष धूम रहती है। श्रद्धालु गौतम ऋषि की तपस्थली गंगभेवा बावड़ी में स्नान करेंगे, जिसे गंगा जल से जुड़ा पवित्र स्थल माना जाता है।
गंगभेवा बावड़ी से जुड़ी आस्था
मान्यता है कि गंगभेवा बावड़ी में गंगा का स्रोत विद्यमान है, जबकि पूरे पछवादून क्षेत्र में यमुना मुख्य नदी है। श्रद्धालुओं का मानना है कि छठ पर्व शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है और हर कार्य गंगा के जल से शुरू करना शुभ माना जाता है। व्रती गणेश जी और सूर्यदेव को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करेंगे। इस पर्व के दौरान चार दिन तक घरों में लहसुन-प्याज का उपयोग वर्जित होता है, और व्रती शांत वातावरण में प्रभु का ध्यान करते हैं।
महिलाओं की आस्था से जुड़ा व्रत, महाभारत काल से परंपरा
छठ पूजा मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाने वाला व्रत है। मान्यता है कि महाभारत काल में जब पांडव अपना राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने सूर्यदेव की उपासना करते हुए यह व्रत रखा था, जिससे उनके जीवन में पुनः समृद्धि आई। लंका विजय के बाद माता सीता ने भी यह व्रत किया था। कहा जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गाय का जन्म हुआ था, इसी कारण इस दिन छठ व्रत रखने की परंपरा आज तक जारी है।
