उत्तरकाशी के केलशू घाटी में गणेश चतुर्थी की अनोखी परंपरा, विसर्जन नहीं, स्थापना होती है- Ganesh Chaturthi

Ganesh Chaturthi News: उत्तरकाशी के केलशू घाटी में गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरी तरह अनोखे तरीके से मनाया जाता है। पूरे भारतवर्ष में जहां गणेश विसर्जन के साथ उत्सव मनाया जाता है, वहीं उत्तरकाशी जनपद के केलशू घाटी में गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन नहीं किया जाता। यहां गणेश जी की मूर्ति को दस दिनों तक पूजा-अर्चना के बाद मंदिर में स्थायी रूप से स्थापित किया जाता है।
डोडीताल को माना जाता है गणेश जी की जन्मभूमि
इस वर्ष साधारण रूप से मनाया गया उत्सव
इस वर्ष धराली में आई आपदा के कारण डोडीताल मंदिर समिति और केलशू घाटी के ग्रामीणों ने गणेश चतुर्थी का पर्व बहुत ही साधारण और शांतिपूर्ण तरीके से मनाया। उत्सव के दौरान कोई भव्य झांकी या बड़े आयोजन नहीं किए गए। समिति के प्रबंधक कमल रावत ने बताया कि आपदा के कारण इस बार उत्सव में भव्यता नहीं है, लेकिन भक्ति का महत्व वही रहा।
अगोड़ा मंदिर में गणेश जी की स्थापना
गणेश चतुर्थी के दिन जनपद मुख्यालय से मणिकर्णिका घाट से गंगाजल कलश लाकर अगोड़ा मंदिर में स्थापित किया गया। मंदिर में गणेश जी के लिए विशेष आसन तैयार किया गया और मूर्ति को विराजमान किया गया। पिछले आठ दिनों से विशेष पूजा-अर्चना चल रही है, जिसमें ग्रामीणों की श्रद्धा देखने योग्य रही।
भजन संध्या और नाग देवता की अगुवाई में विशेष पूजन
शुक्रवार रात को अगोड़ा मंदिर में भजन संध्या का आयोजन किया गया। शनिवार को नाग देवता की अगुवाई में गणेश जी की मूर्ति को गांव की पवित्र धारा में स्नान करवाया गया। इसके बाद विशेष पूजा-अर्चना कर उन्हें मंदिर में स्थायी रूप से स्थापित किया गया। इस परंपरा को देखकर स्थानीय और दूर-दराज़ से आए श्रद्धालु भी मंत्रमुग्ध हो गए।