हंसिए-हंसाइए: यही है सुखी और स्वस्थ जीवन का मंत्र

हंसना शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। केवल शारीरिक ही नहीं अपितु मानसिक और आध्यात्मिक टानिक है। जो व्यक्ति अधिक कठिन व्यायाम नहीं कर पाता, उसके लिए खिल-खिलाकर हंसना एक श्रेष्ठ व्यायाम है। कुछ उच्च पदस्थ अथवा सम्भ्रात व्यक्ति गम्भीरता धारण करके ही स्वयं को अधिक सभ्य प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं, परन्तु वह स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। ऐसे में सामान्य जन उन्हें अपनी बात या अपनी समस्या कहने में संकोच करेगा। परमात्मा भी उन लोगों से अधिक प्रसन्न रहते हैं, जो स्वयं संतुष्ट रहकर प्रसन्न रहते हैं और दूसरों को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति ही उन्मुक्त हंसी हंस सकता है। वह स्वयं हंसता है और दूसरों को भी हंसने का अवसर प्रदान करता है। सच्चाई यह भी है कि हंसते-मुस्कराते व्यक्ति सभी को अच्छे लगते हैं, परन्तु बेबात हंसना भी शिष्टाचार के विरूद्ध है। वह आपको हंसी का पात्र भी बना सकता है। समय आवश्यकता और परिवेश (माहौल) के अनुसार ही हंसिए। किसी का मजाक बनाकर न हंसे, किसी के ऊपर न हंसे। हंसना मनुष्य का एक बड़ा गुण है, परन्तु मर्यादा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। हंसिए-हंसाइये और जीवन को कल-कल करते झरने की तरह बहने दीजिए, यही सुखी और स्वस्थ जीवन का रहस्य है।