पुरूषार्थ की महिमा: मेहनत और संघर्ष से ही प्राप्त होती है सम्मान

पुरूषार्थी सदा से सम्मानित रहा है। निष्क्रिय को कभी प्रतिष्ठा नहीं मिली। सोने वाले के लिए सदा कलियुग है। जिस व्यक्ति ने परिश्रम करने का विचार कर लिया उसके लिए द्वापर आरम्भ हो गया, जिस आदमी ने श्रम के लिए कमर कस ली, उसके लिए त्रेता का आरम्भ हो गया और जब आदमी अपने काम पर उद्यत हो गया, उसके लिए उसी क्षण सतयुग आ गया। कम जल वाला घड़ा अधिक छलकता है। कम दूध देने वाली गाय अधिक चंचल होती है। अल्प विद्या वाला मनुष्य महागर्वी होता है। अल्प बुद्धि वाला स्वयं को अधिक बुद्धिमान दिखाने का प्रयत्न करता है, कुरूप व्यक्ति अधिक सजने संवरने की चेष्टा करता है। इसी प्रकार नवधनाढय (धनाढयता की ओर बढऩे वाला) स्वयं की संसार के धनी व्यक्तियों में गणना करने की मूर्खता करने लगता है, परन्तु आत्मा को परमात्मा पद तब प्राप्त होता है, जब वह अपनी लघुता को महानता में विसर्जित करता है, अपने स्वार्थ को परमार्थ की सीमा तक बढाता है, जब परमार्थ ही स्वार्थ प्रतीत होने लगे तब समझो जीवन का उद्देश्य पूरा हो गया। मानव जीवित तभी माना जा सकता है, जब उसके दिल में प्राणी मात्र के लिए प्रकम विद्यमान हो। जिस पल इंसान प्रेम करना भूल जाता है वह जाति धर्म रंग रूप के आधार पर घृणा करने लगता है। उसी पल वह धरती पर बोझ बन जाता है।