जब साथ न दे दुनिया, तो ईश्वर बनते हैं सहारा

जीवन में सफलता प्राप्ति में पुरूषार्थ का स्थान सर्वोच्च है, परन्तु परूषार्थ में बल तब आयेगा, जब पुरूषार्थ के साथ प्रार्थना जुड़ेगी। दृढ संकल्प के साथ आगे बढिय़े। प्रभु का नाम मन में रहेगा तो मन विचलित भी नहीं होगा। प्रभु से प्रार्थना भी करते रहे कि वह आपके सुसंकल्पों को पूर्ण कराने की शक्ति बल और साहस बनाये रखे। परमात्मा की कृपा हो और भीतर संकल्प शक्ति जागृत हो तो मनुष्य बड़े से बड़ा कार्य भी कर सकता है। किसी का सहारा मिलने की अपेक्षा न करे। दुनिया का सहारा न लम्बे समय तक मिलता है और न व्यक्ति उसके सहारे अधिक समय तक टिक पाता है। सबसे बड़ा और सदा मिलने वाला सहारा तो भगवान का है। भगवान का सहारा हम केलव अनुभव करते हैं, क्योंकि वह दिखाई तो देते नहीं, परन्तु अनुभव कीजिए कि जिस समय आपके अपनों ने आपका साथ छोड़ दिया और आप अकेले खड़े रह गये तो उस समय वह कौन सी शक्ति थी, जिस शक्ति ने आपको बुझने नहीं दिया। वह केवल परमात्मा की कृपा थी कि उसने ऐसा साधन, ऐसी परिस्थिति, ऐसा निमित्त आपको उपलब्ध कराया कि आप अपने उद्देश्यों में सफल हो गये और आपका मनोबल बना रहा।