7 साल की लड़ाई जिसने बदल दी भारतीय मुस्लिम तलाक कानून की बहस, अब इमरान-यामी की फिल्म हक से फिर चर्चा में
What Is The Shah Bano Case: इमरान हाशमी और यामी गौतम की आगामी फिल्म ‘हक’ रिलीज़ से पहले ही चर्चा में है। यह फिल्म भारत के सबसे ऐतिहासिक और संवेदनशील मामलों में से एक शाह बानो केस पर आधारित है। ट्रेलर सामने आने के बाद लोगों में उत्सुकता बढ़ गई है कि आखिर वह कौन-सी कहानी थी जिसने भारतीय मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर राष्ट्रीय बहस छेड़ दी थी।
1978 में शुरू हुई वह लड़ाई जिसने देश को झकझोर दिया
14 साल बाद पति ने की दूसरी शादी, फिर तलाक देकर घर से निकाल दिया
शाह बानो ने 1932 में अहमद खान से निकाह किया था और उनके पांच बच्चे हुए। लेकिन 14 साल बाद पति ने दूसरी शादी कर ली। समय बीता और 1978 में अहमद खान ने शाह बानो को तलाक देकर घर से निकाल दिया। उन्होंने सिर्फ इद्दत अवधि यानी 90 दिनों तक पैसे देने की बात कही और बाद में भुगतान बंद कर दिया।
धारा 125 के तहत गुजारा-भत्ता का दावा, अदालत पहुंचीं शाह बानो
जब तीन महीने बाद भी पैसा नहीं मिला, तो शाह बानो ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) 125 के तहत गुजारा-भत्ते की मांग की। यह धारा सभी महिलाओं को धर्म की परवाह किए बिना अपना भरण-पोषण न कर पाने की स्थिति में पति से गुजारा-भत्ते का अधिकार देती है।
पति और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा
अहमद खान ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए कहा कि इद्दत अवधि के बाद वह किसी तरह के भुगतान के लिए बाध्य नहीं हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी यही तर्क दिया कि अदालतें शरीयत से जुड़े मामलों में दखल नहीं दे सकतीं।
सात साल की कानूनी जंग के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
साल 1985 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। पांच जजों की संविधान पीठ ने सभी तर्क सुनने के बाद शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि CrPC 125 के तहत हर महिला चाहे किसी भी धर्म की हो भरण-पोषण पाने की हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बना भारतीय न्याय व्यवस्था का मील का पत्थर
इस फैसले ने देशभर में बहस छेड़ दी थी। यह निर्णय भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिए लंबे समय तक गुजारा-भत्ते का मार्ग खोलता था। यह मामला आगे चलकर मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट, 1986 के निर्माण का भी कारण बना।
इस संवेदनशील कहानी को नए तरीके से पेश करेगी ‘हक’
फिल्म ‘हक’ इस ऐतिहासिक लड़ाई को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करेगी। शाह बानो जैसी महिलाओं की हकीकत और उनकी सामाजिक-न्यायिक संघर्ष को पर्दे पर दिखाने की उम्मीद की जा रही है।
